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________________ (६४) दोहा-गुन्हेगारके गुन्हेको । वफा करो महाराज॥ जवाहरलालजी महाराज चरणसे।सभी सुधरेकाज॥ मिलत-हीरालाल चरणोंमें चित चीन ॥पण्डित॥४॥ ॥कोध-निषेधाममतमतकीजो राजधनमें यहदेशी॥ क्रोध मत कीजोरे प्राणी । थाने वरजे है गुरु ज्ञानी ॥क्रोध ॥ आ०॥ क्रोड बर्ष लग तपस्यातपिया।क्षिणमे होत विलानी॥ कठिणबचनसहे नरकोइ । ऐसोतपनहीं जानी।को॥१ कठिण बचन बोले नर कोइ । समता घटमें आनी॥ क्रोधानल बुझावोमनकी। मिले मोक्ष निर्वानीको॥२ क्रोध समान नहीं विष कोइ । पाप माहे अगवानी ॥ क्रोध झालजो ऊठी मनमें । सींचो क्षमा पानी।।क्रो॥३ घणा दिनाकी प्रीति जूनी। क्रोधी कहीं पेहचानी॥ जिमदूधनिमकपडियाविगडजायसवघानीको॥४ कषाय रुपणी अमि बुझावा। सूत्रधार सींचानी ॥
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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