SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१५२) महाराज रोमांचित हिये हुलशानी जी। धन्य घडी धन्य भागआज घर जहाज आनीजी ॥ एक बोल घटतो जान के पाछा फिरीया। महाराज नयण में नीर न पावे जी। फिर गया दीन दयाल सती के आंश्रू आवेजी ॥ जइ लियो पारनो हुइ रत्नकी बर्षा । महाराज इंधवी देव बजाइ जी ॥ हुइ ॥ ५॥ या बात सुनी बाइ मूलां दोड कर आवे । महाराज रत्न कोइ ले नहीं जावे जी । थाने कीधो यो उपकार सती मुख यो फरमावेजी। जब वीर जिनेश्वर केवल ज्ञानज पाया। महाराज सती पण संयम लोधोजी। हुइ छत्रीस सहश्रकी गुरुणीवासमुक्ति में कीघोजी यह उन्नीसो त्रेसठ नीमच के मांही। महाराज आसोज सुदी पूनम चंदाजी।
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy