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________________ ( ११५ ) बारह योजनकी लम्बी नगरी | नवयोजनचौडीजानी ॥ बलभद्र कृष्णकी जक्तमें । जोडी है अविछल आनी ॥ द्रव्यवंत दातार घणेरा|जिन भक्त सुनता वाणी ॥ मुनिराज को क्यों नहि। मिलियो फिरतो अन्नपाणी।। शेर - देवकीसे मुनिवर कहे | नगरी में बहु दातारजी || तीन सिंघाडाहम आविया | पटभाइएकउणियारजी ।। कोन मात कोनतात थांरा । कोननगरीकोवासजी ॥ भद्दलपुरमें सुलसाजी | नाग शेठ सुत खासजी ॥ छूट - एक एक जणेको बतीस परणाई | वो नार्या कंचन वरणी कमी नहीं कांई ॥ इण भांत ऋद्धि मुनिराज सर्व संभलाई । फिर आया नेमजी पास आज्ञा पाई || मिलत-मुनिराजका वचन सुनकर । राणी आश्चर्य अति करणं || भद्दल || ३ | मुनि एवंता कह्याथा मुझको । अष्टपुत्र पयायति ॥
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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