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________________ ( ११३ ) 1 ॥ छे भाइ साधूका वर्णन - लावणी चाल लंगडी ॥ श्री नेमीनाथभगवानपधारे। भव्य जीवोपे उपकारकरण । भद्दलपुरकेबाग में । रच्योदेवता समवसरण || टेर ॥ नागसेटमातासुल सांके | छे नंदनहुवे अतिगुणवंत || नलकुंवरकी औपमा । शास्त्र में भाखी भगवंत || वाणी सुनी श्रीनेमीनाथकी। संयम लीनोधरीमनखंत || मातापासे आयकर | पूछत मुर्छा हुइ मतीमंत || शेर - सेठ सेठानी इम कहे। मुझ वलभ होइ इष्ट कंतजी ॥ कुल दीपक चन्द्र जैसा । प्राण जैसा अत्यंतजी | चारित्रतोअतिदोहिलो । नहीं सोहिलो लगारजी ॥ कष्ट करणी सर्व वरणी | करनो उग्रह विहारजी छूट बहु भांत कियो उपाय कुंवर नहीं मानी । जब मात पिता इम कहे लगो एक ध्यानी || मौछव कर संयम लियो प्रभू पास आनी । हुवे श्री नेमीनाथ के शिष्य उत्तम पट प्रानी ॥
SR No.010456
Book TitleJain Subodh Ratnavali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Maharaj
PublisherPannalal Jamnalal Ramlal Kimti Haidrabad
Publication Year1913
Total Pages221
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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