SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११८ जैन पूजा पाठ सग्रह मणिमय दीप अमोलक लेके, रतन रकेवी मे धर लाय । मोहमहातस नाशक प्रभुके, चरणाम्बुजसे देत चढ़ाय॥वाल ॐ ह्रीं श्रीनेमिनाथ जिनेन्द्राय मोहधिकारपिनाशनाय दीप निवरानीनिम्बा ॥ ६॥ कृष्णागरु कपूर मिलाकर, धूप सुगन्ध मनोहर आन! कर्मकलंक निवारक प्रभुके,चरणकमलको पूजो सारवाल ___ ही श्रीनेमिनायजिनेन्द्राय अष्टकमदहनाय धूप निर्वपामीति म्वाहा ॥ ७ ॥ श्रीफल लौंग सुपारी पिस्ता, एला केला आदि महान । मुक्तिश्रीफलदायकप्रभुके, चरणाम्बुज पूजैगुणवान रानाल __ॐ ही श्रीनेमिनायजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फल निवपामीति स्वाहा ॥ ८॥ जलफल द्रव्य मिलाय गाय गुण, रत्नथार भरिये सुखदाल। अष्टकर्म के नाशक प्रभुको पूजौं निजगुण दायक जान॥वाल ___ ही धोनेमिनायजिनेन्द्राय अनध्यपदप्राप्तये यष्य निर्वपामीति स्वाहा ॥ ९॥ पंचकल्याणक, चाल छन् । छठि कार्तिक सित सुखदाई, गर्भागम मंगल गाई । इन्द्रादिक पूज रचाई, हम पूर्णा अर्घ चढ़ाई। ही कातिशुलषष्ठ्या गर्भमालप्राप्ताय श्रीनेमिनायजिनेन्द्राय,अध्यं ।। लित श्रावण छठि शुभ जानौं, जन्मे जिनराज लहानो। पितु समुदविजय सुख पायो, जिनको हम शीश नवायो। ॐ ही प्रावण शुक्लषष्ठ्या जन्ममालप्राप्ताय श्रीनेमिनापजिनेन्द्रायाअध्यं ।। श्रावण सुदि छठि शुभ जानों, तजि राज महामत ठानों। शिव नारि हर्ष बहु कीनों, हम तिनके पद चित दीनों। ही श्रावण शुक्लषष्ठ्या तपोमङ्गलमामायश्रीनेमिनायजिनेन्द्राय अध्यं । । लित एके आश्विन भाई, चउघाति हने दुःखदाई। वर केवलज्ञान सुलीनों, जिनके पद में चित दीनों। ॐही आश्विन शुरूप्रतिपदायां ज्ञानकल्याणप्राप्ताय श्रीनेमिनायजिनेन्द्रायभयं
SR No.010455
Book TitleJain Pooja Path Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages481
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy