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________________ [ ११ ] नाभिराय मरुदेवी नन्दन, व्याह उछाह त्रिलोक भने ॥ माई० ॥१॥ सीस मुकुट गल अनूपम, भूषन बरननको बरनै । माई० ॥२॥ गृह सुखकार रतनमय कीनो चौंरी मंडप सुरगननै माई०॥३॥ द्यानत धन्य सुनन्दा कन्या, जाको आदीश्वर परनै ॥ माई०॥४॥ (२०) राग परज। - माई ! आज आनन्द है या नगरी ॥ टेक ॥ गज गमनी शशि बदनी तरुनी, मंगल गावत हैं सिगरी ॥ माई० ॥१॥ नाभिराय घर पुत्र भयो है, किये हैं अजाचक जाचकरी ॥ माई० ॥२॥ द्यानत धन्य कूख मरुदेवी, सुर सेवत जाके पगरी मा० (२१) जिनके हिरदै प्रभु नाम नहीं तिन, नर अबतार लिया न लिया।।टेक॥ दान बिना घर-वास बासकै, लोभ मलीन धिया न धिया । जिनके०॥ १॥ मदिरापान कियो घट अन्तर, जलमल सोधि पिया न पिया। आन प्रानके मांस भखेतै करुना भाव हिया न हिया ॥ जिनके० ॥२॥ रूपवान गुनखान वानि शुभ, शील विहीन तिया न तिया।
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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