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________________ म्हेंतो ॥३॥ ऐली साख बहुत सुनियत है, जैनपुराण बखाली ॥ म्हें तो ॥ ४ ॥ भूधरको सेवा वर दीज, मैं जांचक तुम दानी ॥ ६५ राग-विहाग। जगत जन जूवा हारि चले ॥ टेक ॥ काम कुटिल संग बाजी माँड़ी, उन करि कपट छले। जगत० ॥१॥ चार कषायमयी जा चौपरि, पांसे जोग रले। इत सरवस उत कामिनी कौड़ो, इह विधि झटक चले । जगत ॥२॥ कूर खिलार विचार न कीन्हों, है है ख्वार भले । विना विवेक मनोरथ काके, भूधर सफल फले ॥३॥ ६६ राग-विहाग। तहां लै चल री ! जहां जादौपति प्यारो ॥ टेक ॥ नेमि निशाकर बिन यह चन्दा, तन मन दहत सकल री। तहां ॥१॥ किरन किधौं नाविक-शर-तति के, ज्यों पावककी झलरी । तारे हैं कि अंगारे सजनी, रजनी राकसदल री। तहां ॥२॥ इह विधि राजुल राजकुमारी, विरह तपी वेकल री। भूधर धन्न शियासुत बादर, वरसायो समजल री । तहां ॥३॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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