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________________ ( ४२ ) रे ॥ चित० ॥३॥ खोय न वीर विषय खल सा, ये कोरनकी घरियां रे । तोरी न तनक तगाहित भूधर. मुकताफलकी लरियां रे ॥ चिनः ॥४॥ ८७ राग-बंगला। जगमें श्रद्धानी जीव जीवनमुकत हैंगे॥टेक॥ देव गुरू सांचे मानें सांचो धर्म हिये आने, ग्रन्थ ते ही लांचे जानें, जे जिन उकत हैंगे ॥ जगमैं ॥१॥ जीवनकी दया पालैं, झूठ तजि चोरी टाले, परनारी भालै न जिनके लुकत हैंगे ॥ जगमैं ॥२॥ जीयमैं सन्तोष धारै हिमैं समता विचारें, आगैंको न बंध पारे, पाठेसौं चुकत हैंगे ॥ जगमें ॥३॥ वाहिज किया अराधैं, अन्तर सरूप साधे, भूधर ते मुक्त ला., कहं न रुकत हैंगे ॥४॥ ८८ राग-बंगला। ___ आया रे बुढ़ापो मानी सुधि बुधि बिसरानी ॥ टेक ॥ श्रवनकी शक्ति घटी, चाल चालै अटपटी, देह लटी भूख घटी, लोचन झरत पानी ॥ आया रे० ॥ १॥ दांतनकी पंक्ति टूटी, हाडनकी सन्धि छूटी, कायाकी नगरि लूटी जात नहिं पहिचानी ॥ आया रे० ॥२॥ बालोंने वरन फेरा, रोगने शरीर
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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