SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 330
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पापी, अघतापी, कुटिलनर संतापी, अतिधोर, मिथ्याती,घाती, अधम, खल, हिंसक, हिये कठोर । सुगतिलई बनकर श्रद्धानी ॥ जगत में सांची० ॥२॥ सिंघ, वाघ, बानर, गज, शंकर कूकर, आदिक जीव, भील, चोर, ठग, गनिका, जाने-कीनेपाप सदीष । किया निजहित बनकर ज्ञानी ।। जगतः ॥३॥ पुन्य- उदय जिसजीव का, सोईपहै, सुनै जिनवैन तीनलोक की दिपै सम्पदा, खुल ज्ञान के नैन, इसी से जोती उरठानी ॥ जगत में साधी ॥४॥ भजन नं. ५ (जिनवानी स्तुति) दोहा-प्रगट वीरमुख से भई, गमधर किया प्रकाश | हे माता जगदीश्वरी, करी हृदय ममदास ।। - छन्द पद्धडी। किया अज्ञानतिमिर सब दूर-किया मिथ्यात सभी तुमचूर । किया गुण ज्ञान प्रकाश महान विनय मनधार नमूंजिनवान ।। लई जिनान शरण तुम मात,किये तिनजीवों के दुखघात । तुम्ही शिवमंदिरको सोपान विनय मनधार नमूंजिनधान ॥१॥ हुए वृषभादिजिनेश पहेश-दिया जगजीवन को उपदेश । किया खलपापिनका कल्यान विनय मनधार नमंजिनवान ।।
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy