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________________ ( ३ ) भजन नं० ३ ( गुरु स्तुति ) मिलें कब ऐसे गुरुज्ञानी ॥ टेक ॥ यश, अपयश, जीवन, मरा - जिन - सुख दुख, एकसमान । मित्ररिपु इकरामलखै - यमंदिर त्यो स्मशान । एकसम गिनें "लाभ हानी मिल क ऐसे ० ॥ १ ॥ कांचखंड, और रत्न, वरावर - ज्यों धन त्योंही धूल, एक है दासी और गनी मिलै कत्र ऐसे ० || २ || ऊंच नीच नही लखें किसीको, सब जिजिनको एक दोष अठारह त्याग जिन्होंने गुण मन घरे अनेक | है fast सिद्धारथ बानी || मिलै कब ऐसे० ॥ ३ ॥ जगजीवन का हित करे, श्ररु ता भवदधि पारज्ञानजोति जगमगे जिन्होंकी-तिन्हें नयूं हरवार | सुफल हो जासे जिंदगानी || मिलें कब ऐसे० || ४ || भजन नं० ४ ( जिनवानी महिमा ) जगत में सांची जिनवानी ॥ टेक ॥ महावीर स्वामी ने भाखी, जगतजीव, कल्याण, गौतम गनधर ने, समझाकर, उदय किया रविज्ञान | तिमिर मियात की कर हानी || जगत में सांची० ॥ १ ॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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