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________________ (२) भजन नं० २ ( लावनी ) तुम सुनो दीनकनाथ विनय इकमरी, अब कृपा करो भगवान शरणमतेरी।।टेक ।। यह दास आपकी शरण चरण में आया, रखलीजे दीनकी लाज विश्वपतिराया। तुमनाम अनन्तअपार शास्त्र में गाया, गुणगावत गनधर आदि पार ना पाया ।। में क्या वरनन करसके अल्पमति मेग अवरुपा करो भगवान शरण में तेरी ।।१।। तुम नेमीश्वर महागज जगत के स्वामी, सचिादानंद सर्वज्ञ सकलजगनामी । में महामलिन मतिमन्द कुटिलखलकामी मोहिकीजेनाथ अब शुद्ध जान अनुगामी देउ मोको भक्तिवरदान कगै मति देरी । अब कृपा० ॥२॥ इस जगमें जन्मत मरत यहादुखपाया, लखोगसीमें भ्रमत भ्रमत घबराया। करुणानिधान जनजान करो अब दाया अति दुखित हुआ तव शरण आपकी आया ।। काटो श्री पार्श यह कठिन कर्म को बेड़ी ।। अब० ॥३।। मैं किसे सुनाऊं व्यथा अपने मनकी, यहां अपना कोई नहीं प्राश कलंकिनकी। मैं कहांलगकरूं बखान दशा निजतन की, तुम सब जानत सर्वज्ञ पीर निजजन की। अतिभारत हो फूला ये कहत प्रभु टेरी, अब कृपा करो भगवान शरण में तेरी ॥४॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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