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________________ * ओ३म् * हितैषी-गायन रत्नाकर ... प्रथम भाग भजन मं० १ स्तुति महावीर भगवान। धन्य तुम महावीर भगवान, लिया पुण्य अवतार जगत का, करने को कल्याण ।। टेक ।। बिलबिलाहट करते पशुकुल को, देख दयामय प्राण। । परम अहिंसामय सुधर्म की, डालीनीव महान ॥धन्य० ॥१॥ ऊंच नीच के भेद भावका, बढ़ा देख परिमान । सिखलायासबकोस्वाभाविक,समतातत्वप्रधान ॥धन्य० ॥२॥ मिला समवश्रित में सुरनरपशु, सबको सबसम्मान । समता और उदारतो का यह कैसा सुभगविधान ॥धन्य० ॥३॥ अन्धी श्रद्धा का ही जगमें, देख राज बलवान । कहा न मानोबिना युक्तिके, कोई वचनप्रधान ॥ धन्यतुम०॥४॥ जीव समर्थ स्वयं करता है, स्वतः भाग्यनिर्माण । यों कह स्वावलम्ब स्वाश्रयका दियासुफलप्रदज्ञान ।। धन्य० ।५। इनही आदर्शों के सन्मुख, रहनेसे सुखखान । भारतवासी एकसमय थे भाग्यवान गुनवान ।।धन्य तुम०॥६॥
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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