SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 269
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ २९ ] ५६ - खमाचकी ठुमरी । सेवें सब सुरनर मुनि तेरोद्वार - तू है धरम अरथ काम मोक्ष को दिवय्या, तोहि तजि अब जाऊं प्रभु किसके बार ॥ टेक ॥ अतुल दरसपुन, अतुल ज्ञान घन, अतुल सुख्य, बलको न पार ॥ १॥ सकल छतरपति, करत भगति अति, चरण परत मस्तकपसार || २ || तुमकूं नमाय माथ, कौन पै पसारू' हाथ, तुषको दवय्या देत लाखन गार || ३ || तुम बिन रागदोष, देत हो सवन मोक्ष, लिये हैं पजोष, सबही प्रकार ॥ ४ ॥ तुम सनमुख रहे, तिन्हें नैन सुख भये, तुम से विमुख, रुले जग मझार || ५ || ६० - रागभौरवी भाग जगोजी, आजतो म्हारो भाग जगोजी ॥ टेक ॥ आज भयो मेरा जन्म कृतारथ, आज भवदधि पार लगोजी ॥ १ ॥ मैं तुम ढिंग कहूँ नहिं आयो, कर्मन के वल आप ठगो जी ॥२॥ वैनतेय सम दरस तिहारो, निरखत काल भुजङ्ग भगोजी ॥३॥ आज भई नेरी मनसा पूरण, आजही नयनानन्द पगोजी ॥ ४ ॥ ६१ - रागनी गाग और जिला | ܐ दरशन के देखत भूख दरी ॥ टेक ॥ समोशन महावीर विगर्जे, तीन छत्र शिर ऊपर छाजैं । भामण्डलसे रवि शशि लाजैं, चँवर दुरत जैसे मेघ झरी ॥ १ ॥ सुरनर मुनि जन बैठे सारे, द्वादश सभा सुगणधर ग्यारे । सुनत धरम भये हरष अपारे, बानी प्रभु जी थारी प्रोतिभरी ||२||
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy