SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भागचन्द पद संग्रह । _COOOOOO उग्रसेन गृह व्याहन आये, समदविजयके लाला ये॥ उग्रसेन० ॥ टेक ॥ अशरन पशु आक्रन्दन लखिके, करुना भाव उपाये । जगत विभूति भूति सम तजिके, अधिक विराग बढ़ाये ॥ उग्रसेन०॥१॥ मुद्रा नगन धरी तन्द्रा विन, आत्म ब्रह्मरुचि लाये। उर्जयन्तिगिरि शिखरोपरि शुचि थानकमें थाये ॥ उग्रसेन ॥२॥ पंचमुष्ठि चढ़ि, कच लुच मुञ्च रज, सिद्धनको शिर नाये । धवल ध्यान पावद पावक ज्वालात, करम कलंक जलाये ॥ उग्र ॥३॥ वस्तु समस्त हस्तरेखाबत, जुगपत ही दरसाये । निरवशेष विध्वस्त कर्मकर, शिवपुरकाज सिधाये ॥ उग्रसेन ॥४॥ अव्यावाध अगाध बोधमयतत्रानन्द सुहाये । जगभूषन दूषनवित स्वामी, भागचन्द गुन गाये ॥ उग्रसेन ॥॥ ४० सांची तो गंगा यह वीतरागवानी, अविच्छन्न
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy