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( १८ )
प्रभू जी नरक निगोद्यांमैं रुल्यो, पायौ दुःख अपार || प्रभूजी || १|| प्रभू जी, हूं पशुगतिमैं ऊपज्यौ, पीठ सह्यौ अतिभार ॥प्रभू जी ॥ २॥ प्रभू जी, विषय मगनमै सुर भयो, जात न जान्यौ काल || प्रभूजी ॥ ३ ॥ प्रभूजी नरभव कुल श्रावक लह्यौ, आयो तुम दरवार || प्रभू जी ४ ॥ प्रभू जी, भव भरसन बुधजनोंजी, मेटौ करि उपगार || प्रभू जी ॥ ५ ॥
३८ राग आसावरी ।
जगतमें होनहार सो होवें, सुर नृप नहिं मिठावै ॥ जगत० ॥ टेक ॥ आदिनाथसेकौं भोजन मै अन्तराय उपजावै । पारसप्रभुकौं ध्यान लीन लखि कमठ मेघ वरसावै ॥ जगत० ||१|| लखमणसे संग भ्राता जाकै, सीता राम गमावै ॥ जगत० ॥ २॥ जैसो कमावै तेसो ही पावै, यो बुधजन समझावै । आप आपको आप कमावौ, क्यौं परद्रव्य कमावै ॥ जगत ||३||
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