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________________ ८] महाचंद जैन भजनावली। कंटक भरितानी ॥ मैं कैसे० ॥३॥ कामचोर ढिग मोह बढे दोउ मारगमांही निसानी ॥ मैं कैसे० ॥ ४ ॥ ऐसे मारग बुधमहाचन्द्र जिनवरवचन पिछानी ॥ मैं कैसे० ॥ ५ ॥ सुफल घड़ी याही देखें जिनदेव ॥ टेर ॥ मनतो सुफल तुम चितवन करतें पदजुग तुमपे आइ लयन सुफल तुम पद दरशेव ॥ सुफल॥ १॥ सील सुफल तुम चरणन मन” जीभसुफल गुणगाइ हस्तसुझल तुम पइकरशेव ॥ सुफल० ॥ २॥ श्रवण सुफल तुम गुण सुणनेमें जन्म सुफल भजि साँइ बुधमहाचन्द्रजु चर्णनमेव ॥ सुफल० ॥३॥ (२) येही अज्ञान पला जिबड़ा तूने निजपर भेद न जानारे ॥ येही ॥ टेर ॥ तो अनादि अमर अरूपी लिर्जर सिद्ध समानारे ॥ येही० ॥१॥ पुद्गलजड़में राचिके चेतन होयरहा सूर्ख प्रधाना
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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