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________________ महाचंद जैन भजनावली । [ S रे ॥ येही ० ॥ २ ॥ कहत सबै जगबस्तु हमारी जैसे बकत यानारे ॥ येही ० ॥ ३ ॥ आतमरूप सम्हारि भजो जिन बुधमहाचन्द्र बखानारे ॥ येही अज्ञान० ॥ ४ ॥ (१३) जिनबानी सदासुखदानी, जानि तुम सेवो भबिक जिनवानी || टेर || इतरनित्य निगोदमांहि जे जीव अनंत समानी । एक सांस अष्टादश जामण मरण कहे दुखदानी ॥ जानि० ॥ १ ॥ पृथ्वी जल अरु अनि पवनमें और वनस्पति आनी । इनमें जीव जिताय जितायर, जीवदयाकी कहानी || जानि० ॥ २ ॥ नित्य अकारण आदिनिधनकरि तीन लोक त्रयमानी । करता हरता कोउनाय याको, ऐसो भेद जतानी ॥ जानी ० ३ ॥ बात बलत्रय बेड़ि धनोदधि धन तनु तीन रहानी । इन आधार लोक त्रय राजत, और कछू न बखानी ॥ जानितुम० ॥४॥ ऐसी जानि जिनेश्वरबानी, मिथ्यातमकी मिटानी । बुधमहा
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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