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________________ महाचंद जन भजनावली। त नाही सरणागत प्रतपालोजी। बुधमहाचन्द्र चरणढिग ठाडो शरण थांकोजी ॥ और ॥ ३॥ (६) धमाल। धरमीके धर्म सदा मनमें । धरमोके ॥ टैर॥ रामचन्द्र अरु सीताराणी जाय बसे दंडकबनमें ॥ धरमी० ॥१॥ द्वारापेक्षण ताहूकीन मुनिवर एक मिले क्षणमें ॥ धरमी० ॥२॥ मास एक उपवासी मुनि लखि हरषे दोउ मन बच तनमें धरमी० ॥ ३॥ दोष रहित मुनिदान निरखके पक्षी जटायु अनुमोदनमें ॥ धरमी० ॥४॥ बुधमहाचन्द्र कहांहूजावो धरमीके धरम सदा मनमें ॥ धरमी ॥५॥ . (१.) ____ मैं कैसे शिवजाऊ रे डिगर भूलावनी ॥ मैं कैसे०॥ टैर ॥ बालपने लरकन संग खोयो, त्रिया संग जवानी ॥ मैं कैसे०॥ १॥ वृद्धभयो सब सुधिगई भजि जिनवर नाम न जानी ॥ मैं कैसे० ॥२॥ भवबनमें डिगरी बहु परती दुख
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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