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________________ ६] महाचंद जैन भजनावली । (७) पूजा रचाऊजो पूजन फल पाऊं तुमपद चाहूंजी ॥ पूजा०॥ टैर॥ निरमल नीर धार त्रय देकर चंदन पद चर्चाऊजी । उज्वल तन्दुल पुंज बनाकर पुष्प चढ़ाऊजी ॥ पूजा०॥१॥ नानारस नैवेद्य मंगाऊ दीपक जोति जगाऊ जी। धूप अनंग मद संग खेयफल अर्घ धराऊ. जी ॥ पूजा० ॥२॥ अष्टद्रव्यको अर्घ बनाऊ नाचि नाचि गुण गाऊजी। बुधमहाचंद्र कहै करजोड्या तुम पद चाहूंजी ॥ पूजारचाऊजो ॥३॥ (८) और निहारोजी श्रीजिनवर स्वामी अंतरयामीजी ॥ ओर नि० ॥टेर ॥ दुष्टकर्म मोय भव भव मांही देत रहैं दुखभारी जी। जरा मरण संभव आदि कछु पार न पायोजी ॥ और नि० १॥ मैं तो एक आठ संग मिलकर सोध सोध दुख सारोजी। देते हैं बरज्यो नहीं मानें दुष्ट हमारोजी ॥ और ॥ २ ॥ और कोऊ मोय दीस
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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