SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वुधजन विलास बार । शक्तिसमान त्याग तप करिये तब बुधजन सिरदारी ॥ अरे ॥३॥ २७ राग-काफी कनड़ी मैं देखा आतमरामा॥ मैं ॥ टेक ॥ रूप फरस रस गंधतै न्यारा दरस-ज्ञान-गुनधामा। नित्य निरंजन जाकै नाहीं क्रोध लोभ मद कामा॥ मैं॥१॥ भूख प्यास सुख दुख नहिं जाकै नाहीं वन पुर गामा । नहिं साहिब नहिं चाकर भाई नहीं तात नहि मामा॥ में ॥ २॥ भूलि अनादिथकी जग भटकत लै पुद्गलका जामा । बुद्धजन संगति जिनगुरुकीतै मैं पाया मुझ ठामा ॥ मैं ॥३॥ २८ राग काफी कनड़ी पसतो अब अघ करत लजाय रे भाई॥ अब•॥ टेक ॥ श्रावक घर उत्तम कुल आयो भैंटे श्रीजिनराय ॥अब० ॥ १ धन वनिताश्राभूषण परिगह त्याग करौ दुखदाय । जो अपना तू तजि नसकै पर सेयां नरकन जाय॥ अब.
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy