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________________ बुधजन विलास नचावत मोकौं, तुम जानत हो सारी । प्रभु २ ॥ थांकी महिमा अगम अगोचर, कहि न सकै बुधि म्हारी । हाथ जोरकै पांव परत हूं, आवागमन निवारी हो ॥ प्रभु० ॥ ३ ॥ २३ : याद प्यारी हो, म्हाने थांकी याद प्यारी ॥ हो म्हाने• ॥ टेक ॥ मात तात अपने स्वारथके तुम हितु परउपग़ारी || हो म्हान• ॥१॥ नगन छवी सुन्दरता जापै. कोटि काम दुति वारी । जन्म जन्म अवलोकौं निशिदिन, बुधजन जा बलिहारी ॥ हो म्हानें ॥ २ ॥ १४ AN २६ राग -- गौड़ी ताल | अरे हां रे तैं तो सुधरी बहुत बिगारी ॥ अरे ॥ टेक ॥ ये गति मुक्ति महलकी पौरी, पाय रहत क्यों पिछारी ।' अरे० ॥ १ ॥ परकौं जानि मानि अपनो पद, तजि ममता दुखकारी | श्रावक कुल भवदधितट आयो, बूड़त क्यौरे अनारी ॥ अरे. - ॥२॥ अबहुं चेत गयो कछु नाहीं राखि श्रापनी
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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