SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 138
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ nhvvvr. वुधजन विलास ॥२॥ विषयकाज क्यौं जनम गुमावै, नरभव कब मिलि जाय । हस्ती चढ़ि जो ईंधन ढोबै, बुधजन कौन वसाय ॥अब० ॥३॥ २६ राग-काफी कनड़ी। तोकौं सुख नहिं होगा लोभीड़ा ! क्यों मूल्या रे परभावनमें। तोकौं ॥ टेक॥ किसी भाँति कहका धन आवै,डोलत है इन दावन में । तोकौं ॥१॥ व्याह करूँ सुन जस जग गावे, लग्यो रहै या भावनमैं । तोकौं ॥२॥दव परिनमत अपनी गति, तू क्यों रहित उपायनमैं तोकौं ॥३॥ सुख तो है सन्तोष करनमैं, नाहीं चाह बढावनमैं ॥ तोकौ ॥४॥कै सुख है बुधजनको संगति, कै सुख शिवपद पावन में । तोकौं ॥ ५ ॥ ३. राग-कनडी। - - । ' निरख नाभिकुमारजी, मेरे नैन सफल भये निर० ॥ टेक ॥ नये नये वर मंगल आये, पाई निज रिधि सार । निरखे ॥१॥रूप निहारन
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy