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________________ बुधजन विलास anvwanav ~ ~ बड़े भाग तुम दरशन पाया ॥ तारो० ॥१॥ मिथ्यामत जल मोह मकरजुत, भरम भैरमें गोता खाया। तुम मुख वचन प्रलंबन पाया, अब बुधजन उरमे हरषाया ॥ तारो० ॥२॥ भवदधि-तारक नवका, जगमाहीं जिनवान॥ भव० ॥टेका नय प्रमान पतवारी जाके, खेवट प्रातमध्यान। भव० ॥१॥ मन वच तन सुध जो भवि धारत, ते पहुंचत शिवथान । परत 'अथाह मिथ्यान भवर ते, जे नहिं गहत अजान भव० ॥२॥ विन अक्षर जिनमुखतें निकमी परी वरनजुत कान। हितदायक बुधजनकों गनधर गूथे ग्रंथ महान ॥भव० ॥३॥ _____२४ राग-धनासरी धीमो तितालो प्रभु, थांसूं अरज हमारी हो ॥ प्रभु ॥ टेक ॥ मेरे हितू न कोऊ जगतमैं, तुम ही हो हितकारी हो ॥ प्रभुः ॥१॥ संग लाग्या माहि मेकन छाड़े, देत माई.दुख भारी । भवनमाहिं
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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