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________________ ( ६ ) जन्म जन्म अघ भाजै हो। बुधजन याकौं कबहुं न बिसरो, अपने हितके काजै हो ॥ अहो० ॥३॥ ___ १७ राग-सारंग लहरि। __श्रीजी तारनहारा थे तो, मोनैं प्यारा लागो आज ॥ श्री ।। टेक ॥ बार सभा बिच गन्धकुटीमें आज रहे महाराज श्री ॥१॥ अनन्त कालका धरम मिटत है, सुनतहिं आप अवाज ॥ श्री. ॥ २॥ बुधजन दास रावरो विनवै, थांतूं सुधरै काज ॥ श्री० ॥ ३ ॥ १८- राग-पूरबी एकताला। तनके मवासी हो, अयाना ।। तनके० ॥ टेक चहुंगति फिरत अनन्तकालतें, अपने सदनकी सुधि भौराना ॥ तनके० ॥ १॥ तन जड़ फरस गन्ध रसरूपी, तू तो दरसनज्ञान निधाना, तनसौं ममत मिथ्यात मेटिक, बुधजन अपने शिवपुर जाना ॥ तनके० ॥ ॥ ५६ राग-पूरवी एकतालो। नैन शान्त छवि देखि छके दोऊ ॥ नैन टेक ॥ अब अद्भुत दुति नहिं विसराऊ, बुरा भला जग कोटि कहो कोऊ ॥ नैन ॥ १॥ बड़
SR No.010454
Book TitlePrachin Jainpad Shatak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinvani Pracharak Karyalaya Calcutta
PublisherJinvani Pracharak Karyalaya
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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