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________________ या शब्दमें पुद्गलपनेका खण्डन करनेके अभिप्रायसे यौगमतवालोने पांच हेतु दिखाये हैं । (१) शब्द पुद्गलमयी नहीं है। क्योंकिस्पर्शगुणरहित है। (२) शब्द पुद्गलमयी नहीं है। क्योंकि अत्यंत सघन पदार्थों से भी प्रवेश करते तथा निकलते हए रुकता नहीं है ।(३) शब्द पुद्गलरूप नहीं है। क्योंकि शब्दरूप पर्यायके पूर्वोत्तर पर्यायरूप अवयव नही दीखते है (४)। शब्द पौद्गलिक नहीं है। क्योंकि; अन्य छोटे छोटे मूर्तिक द्रव्योंको कंपा नहीं सकता है । (५) शब्द पुद्गलका विकार नही है। क्योंकि, शब्द आकाशका गुण है । जो पौद्गलिक होता है वह स्पर्शसहित होता है, अति सघन वस्तुमें प्रवेश नही कर सकता है तथा उसमेंसे निकल भी नहीं सकता है, आगे पीछेकी अवस्थाके अवयव भी उसके दीखते है, अन्य छोटे छोटे मूर्तिक द्रव्योंको वह कंपाता भी है और जो पुद्गलमयी होता है वह आकाशका गुण नही होता है । यौगमत लोके ये पांचो ही हेतु हेत्वाभास है। किस प्रकार हेत्वाभास है सो दिखाते हैं। KI शब्दपर्यायस्याश्रयो भाषावर्गणा, न पुनराकाशम् । तत्र च स्पर्शो निर्णीयते एव । यथा-शब्दाश्रयः स्पर्शवान् अनुवातप्रतिवातयोर्विप्रकृष्टनिकटशरीरिणोपलभ्यमानानुपलभ्यमानेन्द्रियार्थत्वात् तथाविधगन्धाधारद्रव्यपरमाणुवत् । इत्यसिद्धः प्रथमः । द्वितीयस्तु गन्धद्रव्येण व्यभिचारादनैकान्तिकः। वर्तमानजात्यकस्तूरिकादि गन्धद्रव्यं. हि पिहितद्वारापवरकस्यान्तर्विशति वहिश्च निर्याति, न चापौगलिकम् । al शब्दरूप पर्यायका उपादान कारण भाषावैर्गणारूप पुद्गल है; आकाश नहीं है । और उसमें स्पर्शका निर्णय भी होता ही है। कैसे ? शब्दका आश्रय ( उपादान कारण ) स्पर्शसहित ही है । क्योंकि यदि वायु अनुकूल (मुखके आगेसे मुखकी तरफ आनेवाला ) हो तथा सुननेवाला प्राणी जहां शब्द होता हो उससे दूर हो तो भी शब्द सुनाई पडता है नही तो (वायु प्रतिकूल IN होनेपर सुननेवाला शब्दकी उत्पत्तिके स्थानके पास हो तो भी) नही । जैसे-यदि वायु अनुकूल ( आगेसे आनेवाला ) हो तो सूंघनेवाला प्राणी गन्धके स्थानसे दूर रहे तो भी वह गन्ध जानी जाती है नही तो नही (इसलिये जैसे गन्धद्रव्य पौद्गलिक है। सातैसे शब्द भी पौगलिक ही होना चाहिये)। इस प्रकार योगमतवालेका प्रथम हेतु असिद्ध हुआ। दूसरा हेतु भी गन्धद्रव्यसे ही| | जो हेतु साध्य सिद्ध करनेके अभिप्रायसे बोला जाता है वह यदि झूठा (सदोप) हो तो उसको हेत्वाभास कहते हैं । २ पुद्गलके एकसे खण्डोके समूहको वर्गणा कहते हैं। पुद्गलकी वर्गणा सर्व वाईस हैं। इन्हीमसे एकका नाम भापावर्गणा है। जिनसे शब्द वनसकै उनको भापावर्गणा कहते हैं। - र
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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