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________________ लद्रव्य, गुण और कर्म इन तीनमें ही सत्ताका योग है और सामान्य आदि तीन पदार्थोमें नहीं । यह अर्द्धजरतीय न्यायके समान | - कैसे कहते हो भावार्थ-जैसे मदोन्मत्त पुरुष उसी एक स्त्रीको वृद्धावस्थासे पीडित तथा युवावस्थासे मनोहर कह देता है; उसीके | समान यह तुह्मारा कहना है कि, द्रव्यादि तीनमें सत्ताका योग है और सामान्य आदिमें सत्ताका योग नहीं है। ___ अनुवृत्तिप्रत्ययाऽभावान्न सामान्यादित्रये सत्तायोग इतिचेत् । न । तत्राप्यनुवृत्तिप्रत्ययस्यानिवार्यत्वात् ।। पृथिवीत्वगोत्वघटत्वादिसामान्येषु सामान्यं सामान्यमिति । विशेषेष्वपि बहुत्वादयमपि विशेषोऽयमपि विशेप इति । समवाये च प्रागुक्तयुक्त्या तत्तदवच्छेदकभेदादेकाकारप्रतीतेरनुभवात् । शंका-सामान्य आदि तीन पदार्थों में अनुवृत्तिप्रत्यय नहीं है, इसकारण उनमें सत्ताका संबंध नहीं है । समाधान-सो नही। || क्योंकि सामान्यआदि तीन पदार्थोंमें भी अनुवृत्तिप्रत्यय बे रुकावट होता है । भावार्थ-पृथिवीत्व, गोत्व तथा घटत्व आदि रूप जो सामान्य है, उनमें यह सामान्य है, यह सामान्य है, इसप्रकारसे अनुवृत्ति प्रत्यय है । विशेष वहुत ( अनंत ) है; अतः उनमें | यह भी विशेष है, यह भी विशेष है, इसप्रकारसे अनुवृत्तिप्रत्यय है । और समवायमें पूर्वोक्तप्रकारसे उस उस अवच्छेदकके | भेदसे एक आकाररूप प्रतीतिका अनुभव होता है; इसकारण समवायमें भी अनुवृत्तिप्रत्यय है। _स्वरूपसत्त्वसाधर्म्यण सत्ताध्यारोपात्सामान्यादिष्वपि सत्सदित्यनुगम इति चेत्तर्हि मिथ्याप्रत्ययोऽयमापद्यते । ॥ अथ भिन्नस्वभावेष्वेकानुगमो मिथ्यैवेतिचेद्रव्यादिष्वपि सत्ताध्यारोपकृत एवास्तु प्रत्ययानुगमः । असति मुख्येऽ ध्यारोपस्यासम्भवाद्र्व्यादिषु मुख्योऽयमनुगतः प्रत्ययः सामान्यादिषु तु गौण इतिचेत् । न । विपर्ययस्यापि शक्यकल्पनत्वात्। यदि कहो कि,—वरूपसत्त्वसाधर्म्यसे अर्थात् जैसे द्रव्य आदिमें अस्तित्वरूप वस्तुखरूपकी सत्ता है; उसी प्रकार सामान्य आदिमें भी अस्तित्वरूप वस्तुखरूपकी सत्ता रहनेसे सामान्य आदिमें सत्ताका अध्यारोप (उपचार) कर लेवेंगे, इस कारण सामान्य | आदिमें भी यह सत् है, यह सत् है, ऐसी प्रतीति हो जावे गी, तो यह अनुगतप्रत्यय उपचार जनित है, अतः मिथ्याप्रत्यय हो जावेगा । यदि कहो कि,-भिन्न खभावके धारकोंमें एकताका अनुगम करना मिथ्या ही है अर्थात् सामान्य आदि भिन्न खभाववाले पदार्थों में एकरूपताकी प्रतीतिका करना असत्य ही है तो द्रव्य आदिमें भी सत्ताके अध्यारोपसे ही किया हुआ अनुगत प्रत्यय
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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