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________________ प्राकृतपद्यानुक्रमणी जोगणिमित्तं गहणं * मूला० ६६६ जो जम्मुच्छवि पहावियट साघय० दो० १६८ जोगणिमित्तं गहणं* पथि० १४८ जो जम्हि गुणो दवे समय० ११३ जोगपउत्ती लेस्सा गो० जी० ४८६ जा जन्हि सछहंतो कसायपा० १४० ८७) जोगविणासं किच्चा कत्ति० अणु० ४८५ जो जस्स पडिणिही खलु जबू० ५० ११-७ जो गहइ एक्कसमए ४ णयच० ३० जो जस्स वदृदि हिदे भ. श्रारा० १७६३ जो गहइ एक्कसमये x दवस. णय० २०२ जो जम्स होइ ठाणे श्राय० ति० २४-२ जोग पडि जोगिजिणे गो० जी० ७१० जो जं अंगं भुजइ श्राय० ति०८-१६ जोगा पयडिपदेसा + मूला० २४४ जो जं सकादि य कसायपा० ६२(6) जोगा पयडिपदेसा+ गोक० २५७ | जो जाइ जोयएसयं मोक्खपा० २१ जोगा पयडिपदेसा + पचसं०४-५०७ जो जाए परिणमित्ता भ० श्रारा० १९२२ जोगा पयडिपदेसा दव्वस० णय० १५४ | जो जाणइ अरहनो(तं) ढाढसी० ३८ जोगाभाविदकरणो म० श्रारा० २२ जो जापाइ समवायं मूला० ५२२ जोगिम्मि अजोगिम्मि य गो. क. ७०३ जो जाणइ सो जाणि जिय परम०प०१-४६२.(प्र) जोगिम्मि अजोगिम्मि य गो० क०८७३ जो जापदि अरहतं पवयणसा०१-८० जोगिम्मि ओघभगो पचस०४-३६४ जो जापदि पच्चक्खं कत्ति० अणु० ३०२ जोगिस्स सेसकालं लद्धिसा० ६४० जो जाणादि सो पाण पवयणसा० १-३५ जोगिस्स सेसकालो लद्धिसा. ६६ जो जाणादि जिशिंदे पवयणसा०२-६५ जोगे गहिदम्मि वरिस- छेदपिं० १४५ | जो जाणिऊण देहं कत्ति० अणु० २ जोगे चउरक्ग्वाणं गो० जी० ४८६ | जो जारिसत्रो कालो भ० श्रारा० ६७१ जोगेसु मूलजोगं मूला० ६३७ / जो जारिसी य मेत्ती भ० श्रारा०३४३ जोगेहि विचित्तेहिं म० श्रारा० २५३ | जो जिउ हेउ लहेवि विहि परम० ५० १-४० जोग्गमकारिजंतो म० श्रारा. ११० | जो जिणवरिंदपूआ धम्मर० १३८ जोग्गमकारिज्जतो म. आरा० ११२ | जो जिणसत्थं सेवइ कत्ति० अणु० ४६१ जो घरि हुत: धण-फपाइँ सावय० दो० ६३ | जो जिण सोहउँ सो जि हउँ जोगसा० ७५ जो चउविह पि भोज्नं कत्ति० अणु० ३८२ जो जिणु केवलणाणमउ परम० प० २-१६७ जो चच्चइ जिणु चंदण सावय० दो० १८४ | | जो जिणु एहावइ घयपयहिं सावय० दो० १८१ जो चत्तारि वि पाए समय० २२६ जो जिणु सो अप्पा मुणहु जोगसा० २१ जो चयदि मिट्ठभोज्नं कत्ति० अणु० ४०१ जो जीह तिहीइ पहू श्राय० ति० १-२७ जो चरदि णादि पिच्छदि पंचत्थि० १६२ जो जीइ दिसाइ गओ श्राय० ति० १-३४ जो चरदि संजदो खलुणियमसा० १४४ दन्वस० गय० १०६ जो चावि य अणुभागा कसायपा० २२७(१७४) जो जीवरक्खणपरो कत्ति अणु०३६६ जो चिय जीवसहावो दवस. णय० २३७ जो जीवो भावंतो भावपा०६१ जो चिंतइ अप्पाणं कत्ति० अणु० ४५३ जो जुद्धकामसत्थं कत्ति० अणु०४६२ जो चिंतेइ ण वंकं कत्ति० अणु० ३६६ जो जेणं संच(चा)रइ श्राय०ति० २७-८ जो चिंतेइ सरीरं कत्ति. अणु० १११ जो जेमइ सो सोवह भावसं० ११४ जो चेव कुणाइ सो चिय समय० ३४० जो चेव जीवभावो जो जोडेदि विवाह णयच०६७ लिंगपा०६ जो छइंसगतकतक्कियइमं रिट्रस०२५७ जो जो रासी दिस्सदि तिलो० सा०८८ जो जण पढइ तियालं णिव्वा० भ० २७ | जो ठाणमोवीरा मूला० ६२२ जो जत्थ कम्ममुक्को भावस० ६६० जो डहइ एयगामं भावस. २४३ जो जत्थ जहा लद्धं मूला० ६३१ । जो ए करेदि जुगुप्प समय०२३१
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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