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________________ १२४ पुरातन-जैनवाक्य-सूची जो इच्छइ निस्सरिढुं मोक्खपा० २६ | जो उवयादि जदीणं __कत्ति० अणु • ४५७ जो इच्छदि निस्सरिदुं तिलो० ५० १-५० जो उवविधेदि सव्वा- भ० श्रारा० २००५ जोइज्जइ तिं बंभु परु परम० ५० १-१०६ जो उवसमइ फसाग भावस० ६५५ जो इट्ठण (जोइस)णयरीणं तिलो० ५०७-११५ जो एड प्रणाहूरो श्रायः ति० २३-१४ जोइय अप्पें जाणिएण परम० ५० १-६६ जोए करणे सरणा मूला० १०१७ जाइय चिंति म किं पि तुहुँ परम० ५० २-१८७ जो एगेगं अत्थं कत्ति० अण्० २७६ जोइय जोएं लइयइण पाहु. दो० ६१ | जो एत्य अपडिपुराणो पचस०५-५०३ जाइय णिय-माण णिम्मलए परम०प० १-११६ जो एयसमयबट्टी * णयच० ३८ जोइय णेहु परिचयहि परम० प० २-११५ जो एयममयवट्टी दवस० गय० २१० जोइय दुम्मइ फवुण तु: परम० प० २-१७५ जो एरिसियं धम्म धम्मर० ११ जोइय देहु धिणावणउ परम० प० २-१५१ जो एवं जाणित्ता पवयणसा०२-१०२ जोइय देहु परिच्चयहि परम० ५०२-१५२ जो एव जाणित्ता तिलो. प०१-३५ जोइय भिएणउ माय तुहॅ पाहु. दो० १२६ / जो एवंविहदोसो वेदपि० २७८ जोइय मिल्लहि चिंत जइ परम० प० २-१७० जोएहिं तीहि वियरइ भावस० ६४६ जोइय मोक्खु वि मोक्ख-फलु परम० प० २-२ | जो प्रोलग्गदि धारा- भ. धारा० २००६ जोइय मोहु परिच्चयहि परम०प० २-१११ | जो फत्ता सो भुत्ता भावसं० २६६ जाइय लोह परिच्चयहि परम०प० २-१३ | जो फम्मजादमइओ मोपखपा० ५६ जोइय विसमी जोय-गइ " परम० प० २-१३७ / जो कम्मक्लुसरहियो जवृ० प०१३-६३ जोइय विममी जोयनाइ* पाहु० दो०१८ जो फम्मंसो पविसदि क्सायपा० २२४ (१७१) जोइय विंदहिं णाणमउ परम० ५० १-३६ जो पल्लाणसमग्गो जवू० ५० १३-८८ जोइय सयलु वि फारिमउ परम० प० २-१२६ | जो कुणइ का उमग्गं कत्ति० अण्० ३७१ जाइय हियडइ जासु ण वि पाहु. दो० १६४ जो कुणाइ जयमसेसं भावसं० २१५ जोइय हियडइ जासु पर पाहु० दो० ७६ | जो कुणाइ पुण्णपाच भावसं०३८ जोइसदुमा वि णेया जंवू० प० २-१२८ जो कुणदि वच्छलत्त समय० २३५ जोइसदेवीणाऊ तिलो. सा. ४४६ जो कोइ मज्म उवधी मूला. १९४ जोइसवरपासादा जवू० ५० १२-१०६ जो फोडिए ण जिप्पइ मोक्खपा०२२ जाइसविन्नामंतो __ रयणसा० १०६ | जो को वि धम्मसीलो दंसणपा०६ जोइसिय-णिवासखिदी तिलो० प०७-२ | जो खलु श्रणाइणिहणो दव्यस० गय० २६ जोइसिय-वाण-जोणिणि- गो० जी० २७६ | जो खलु जीवसहाओ दवस० गय० ११५ जोइसिय-वाण-वेंतर- तिलो० ५० ५-७३ | जो खलु दव्वसहावो पवयणसा०२-१७ जोइसियंताणोहीगो० जी० ४३६ जो खलु संसारत्थो पंचस्थि० १२८ जोइसियाण विमाणा कत्ति० अणु० १४६ | जो खलु सुद्धो भावो तच्चसा०८ जोइसियादो अहिया गो० जी० ५३६ | जो खलु सुद्धो भावो श्रारा० सा० ७६ जो इह सुदेण भणिो दव्वस० णय० २८६ | जो खवयसेढिरूढो भावस०६६० जो इंदियाई दडइ भावसं० १७६ जो खविदमोहकम्मो तिलो० प०६-४६ जो इंदियादिविजई पवयणसा० २-५६ जो खविदमोहकलुसो पवयणसा०२-१०४ जो इंदिये जिणत्ता समय०३१ | जो खु सदिविप्पहूणो भ० श्रारा. १८४३ जोईणं माणगम्मो परमसुहमहो णियप्पा० ४ जंबू० ५० १३-५ जंबू०प० १२-७२ भ. श्रारा०५५३५ जो उप्पएणो रासी जो उवएसो दिन्नइ __ कत्ति० अणु० ३४५ ) जोगहाणा तिविहा गो. क. २१८
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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