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________________ 88 उत्तममज्झिम उत्तमरणं खु जहा उत्तमु सुक्खु उत्तमु सुक्खु उत्तरकुरुगंधादी उत्तरकुरुदे वकुरूउत्तरकुरुमरणुयाणं उत्तरकुरुमणुयाणं उत्तरकुरुम्म मझे उत्तरकुरू पढमो देइ जइ देइ जइ उत्तरदिस उत्तरदिस रिट्ठा उत्तरदिए रिट्ठा उत्तरदिसाविभागं उत्तर दिसाविभागे उत्तरदिसाविभागे उत्तरदिसाविभागे पुरातन- जैनवाक्य-सूची बोधपा० ४८ | उत्तरबहुले परहे उत्तरभंगा दुविहा उत्तरमग्गे पढमो उत्तरदिसि को दुगे उत्तरदिसे रोया उत्तर-देवकुरुसंउत्तरधमवि एवं उत्तरधमिच्छंतो उत्तर- पच्चिमभागे उत्तरपडी तहा उत्तरपयडी पुमो उत्तरपुत्रं दुरिम भावस० ५०४ परम० प० २-५ उत्तरकुलगिरिसाहे उत्तरगा यदुआदी उत्तरगुण्उज्जमणे उत्तरगुण उज्जोगो उत्तर-दक्खिगा-उड्ढाउत्तर-दक्खि-दीहा उत्तर-दक्खि-दीहा उत्तर दक्खिण- पासो उत्तर-दक्खिण-भरहो उत्तर-दक्खिण-भाए उत्तर-दक्खिण-भाए तिलो० प० ४ - १८५६ उत्तर-दक्खिण-भाए उत्तर-दक्खिण-भागाउत्तरदहवासिणिश्र परम० प० २-७ उत्तर महप्पहक्खा तिल्लो० सा० ७४१ | उत्तरमुहे गंतु जंबू ० ० ६-१६६ | उत्तर-मूल-गुणाणं नंबू० प० ४- १३५ | उत्तरलोयडूढवादी तिलो० प०८-६ | उत्तरसरसंजुत्ता जंबू० पं० ६-५७ | उत्तरसरसंजुत्ता जबू० पं० २ - ११५ उत्तरसरसंजोए तिलो० सा० ६४६ उत्तरसरा क- गाई तिलो० सा० ११३ | उत्तरसेढीए पुण भ० श्रारा० ११६ | उत्तरसेढीए पु मूला० ३०० | उत्तरसेढीबद्धा तिलो० सा० ३४४ | उत्तराणि श्रहिज्जति तिलो० प० ४-२०६८ उत्तरिय वाहिणीओ तिलो० प० ८-६०४ | उत्ताराष्ट्रियगोलक - जंबू० प० ४-५ | उत्तारणट्टियमंते तिलो० प० ४ - २६७ उत्तारणधवलद्दत्तो तिलो० प० ८-६५३ | उत्तारणावट्टिदगो उत्तगदंतमुसला तिलो० प० ४-२०१२ |उत्तुंगभवरणविद्दा उत्तेव सव्वधारा तिलो० प० ४-२८१६ जंबू० प० ३-७८ उत्थरइ जा ण जरओ तिलो० प० ४ -२७७६ | उदइलाणं उदये उ तगुणो तिलो० १० ८- ६१८ उदए गंधउडीए त्रिलो० प०८-६३७ उदएण एक्ककोसं जंबू० प० ६-११७ उदर पवेज्ज हि [खु] सिला तिलो० प० ४-१६६२ उद संजमस्स दु तिलो० प० ४-१७६५ | उदओ च जबू० प० ६-६७ | उदो तीसं सत्तं तिलो० सा० २७५ | उदय सव्वं चउपरणजंबू० प० १०-३३ | उदय हवेदि पुन्त्रातिलो० प० ४ - २६८ | उदकारणामेण गिरी जंबू० प० १२- ७८ उद्गो उदगावासो जंबू० प० १२-४७ उदधित्थरिणदकुमारा जंबू० प० ६-७१ उदधिपुधत्तं तु तसे पंच० ४-२३२ |उदधिसहस्सपुधत्तं गो० क० १६६ | उदधिसहस्सपुध तं चिलो० प० ४-२३०१ | उदधिसहस्सस्स तहा श्राय० ति० ३०-४ गो० क० ८२३ छेदपिं० २३१ तिलो० प० ५-४४ जंबू० प०८-१२१ छेदस० १३ जंबू० प० ११-३२८ श्राय० ति० १६-१० श्रा० ति० २०-६ श्राय० ति० २०-७ श्राय० ति० १०-२२ जवू० प०८-१८६ जंबू० प० ११-३०६ तिलो० सा० ४७६ अंगप० ३-२५ तिलो० प० ४-४८७ तिलो० सा० ३३६ तिलो० सा० ५५८ तिलो० प० ८-६५६ तिलो प० ७-३७ जंबू० प० ३-१०१ जंबू००८-१२६ तिलो० सा० ५४ भावपा० १३० लद्धिसा० २६ तिनो० प०४ तिलो० प० ४- १५६७ भ० श्रारा० ६७२ समय० १३३ कसायपा० १४५ (६२) गो० क० ७०२ गो० क० ७२६ तिलो० प० १-१८० तिलो० प० ४-२४६२ तिलो० प० ४- २४६५ तिलो० प०३-१२० गो० क० ६१५ लखिसा० ४११ लद्धिसा० ४१८ पंचसं० ४-४१२
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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