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________________ 'उ उडुपह- उडुमज्झिम- उडुउडुपहुदिदया उडुपहु दिएक्कतीसं उडुविमलचंदामा उडुविमलचंदवग्गूउडुसेढीबद्धदलं उडुसेढीबद्धद्धं डहरणादिचवला उड्डाहरा थेरा उडूढ-अध- मज्म-लोए उढगया प्रवासा उड्ढजुगे खलु वढी उड्ढ - तिरिच्छ-पदारणं उधो तिरियम्हि दु उढहतिरियलो उडूढ अहतिरियलोए उढम्मि उरलोए कहाणी गंतू पुरो उडूढं वह दिग्गी उढाउ दक्खिणाघो उड्दुडूढं रज्जुघणं उ ( g ) डूढे उढोधमो अंकवडूटिय उइगिवीस वीसं उउदी तिरिया उरणताललक्खजोयरणउती जो सदा उ (ऊ) णत्तीससयाइ ' उतीससहस्साधियउती तिरिणसया उगती लक्खाणं उदा पणत्तरि उरणदालं लक्खाण उरणवरणजुदेक्कसयं उणवणदिवस विरहिदउगवणभजिदसेढी उगवणसहस्सा अडउरणवरणसहस्सा एव उगवणसहस्सा रिंग प्राकृत पद्यानुक्रमणी उगवणा दुसयारिंग उवा पंचसया उवसगुणं किवा उणवीसजोयणेसुं उणवीसमो सयंभू उणवीससा वस्सा उरणचीससहस्सा इ तिलो० ५०८-१०१ भ० श्रारा० १४०३ | उणवीससहस्सारिप भ० श्रारा० ३८६ } उरणवीस सहस्सारिंग मोक्खपा० ८१ उणवीसा एयसगं तिलो० सा० २६५ | उरणचीसेहि य जुत्ता तिलो० प० १ - २८७ उरणसट्टिजुदेक्क्सयं गो० क० ८६३ | उरणसट्ठिजोयरणसदा मूला० ७५ | उपसट्ठिसया इगतीससिद्धभ० ३ उरासीदिसहस्सा‍ि मूला ४०२ | उणसीदिसहस्सागि चसु० सा० ४६१ | उण्णयपीरणपत्रहरतिलो० प० ४ - १७८६ उहं लंडदि भूमी जंबू० प० ५-४८ उन्हं वादं उन्हें णाणसा० ५४ | उत्तपइण्णयमज्झे तिलो० प० ७-४६२ || उत्तम गम्हि हवे विलो० प० १-२६१ |उत्तम श्रादा भ० श्रारा० ३६३ | उत्तमकुले महंतो तिलो० प० ६-३७ उत्तमख ममद्दवज्जवभावति० ४३ | उत्तमख मा (म) ए पुढवी चिलो० प० २-५६ | उत्तमगुणगहणरओ तिलो० प०८-२८ तिलो० प०८-८० तिलो० प०८-५०६ तिलो० प०८ - १३७ विलो० प० ८-१२ तिलो० सा० ४६४ तिलो० सा० ४७४ उत्तमगुणारण धम्मं उत्तमखित्ते बीयं जंबू ० प० ७-१५ गो० क० ८६ | उत्तम ठाणगदाण तिलो० प० ४-५७१ | उत्तमरणारण पहाणो तिलो० प० ८- २०२ | उत्तमदुमं हि पिच्छइ तिलो० प० २-८८ तिलो० प० १ - १६८ तिलो० प० २ - ११४ उत्तमदेवमणुस्से उत्तमधम्मेण जुदो उत्तमपत्तविसेसे तिलो० प० ०-१५३ उत्तमपत्तं गिदिय तिलो० प० ४- १५४२ उत्तमपत्तं भणियं तिलो० प०९ - १७८ | उत्तमपत्तु मुगिंदु जगि तिलो० प० ८ - १७४ | उत्तमपुरिस हॅ कोडिसय तिलो० प० ७-५५७ उत्तमभोगखिदीए तिलो० प० ४-१२२३ उत्तम - मज्म- जहां ४३ तिलो० प०२-१८२ तिलो० प० ७-१६७ जंबू० प० २-१६ सिलो० प० १-११८ तिलो० ५० ४-१५७६ तिलो० प० ४-१४०४ तिलो० १० प० ४-२५७२ तिलो० प० ८-६२८ तिलो० ए०४-२८२३ जबू० प०३-१३० पंचसं० १-४२ तिलो० प० ७-२६२ , मूला० १६०४ तिलो० प०८-१७५ तिलो० प० ४-७२ तिलो० प०४-१२२० जंबू० प० ३-११० तिलो० सा० ८६६ भ० सारा० १५४८ तिलो० प०२-१०२ गो० जी० २३६ पियमसा० ६२ भावस० ४२१ बा० थ५० ७० श्रा० भ० ५ कत्ति० श्र० ३१५ कत्ति० अणु० २०४ भावसं० २०१ अंगपं० ३-३१ कत्ति० अ० ३६५ रिट्स० ४६ श्रारा० सा० ११० कत्ति० अणु० ४३० कत्ति० अ० ३६६ भावस० ५५४ बा० श्रणु० १७ सावय० दो० ७६ सुप्प० दो० ७३ तिलो० प० १-१ चसु० सा० २८०
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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