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________________ पुराण और जैन धर्म -- इन - पुराण - प्रन्थो में वर्णन की गई जैन सम्बन्धि कथाओं के परस्पर विरोध में यदि उन्हें किसी प्रकार की आपत्ति की सम्भावना हो तो उनको मुनासिब है कि वे झट से "कल्पभेदेन भेदः" वाली व्यवस्था देवी का स्मरण करलें ? वस फिर क्या, स्मरण करते ही विरोध का भूत भाग निकलेगा ! [ स्कन्द पुराण ] स्कन्द पुराण में भी जैन धर्म के विषय का कुछ उल्लेख है । परन्तु वह अन्य सव पुराणो की अपेक्षा सर्वथा नवीन और अपने ढङ्ग का एक है । पाठक उसे भी देखे । स्कन्द पुराण - तृतीय ब्रह्म खण्ड -. धर्मारण्य माहात्म्य के ३६-३७-३८ अध्याय में वाद विवाद रूप से एक बड़ी विस्तृत कथा लिखी है, उसका संक्षेप से भावार्थ मात्र हम पाठको की सेवा में निवेदन करते हैं । तथाहि[वंगला आवृत्ति तृ० ब्र० खं० धर्माशय अ० ३६-३७-३८पृ० १८८५] 'कलियुग' के आदि में कान्यकुब्ज देश का अधिपति आम नाम का एक राजा हुआ, वह प्रजा पालन में तत्पर नीतिमान् और बड़ा धर्मात्मा था | परन्तु कलियुग के प्रभाव से उसकी प्रजा की बुद्धि पाप में लग गई अतः वौद्ध धर्मानुयायी सन्यासियों के उपदेश में उसने-प्रजा ने-निजी वैष्णव धर्म को त्याग कर बौद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया । ܕ܂ (१) इदानी च कलौ प्राप्ते श्रामनाम्ना वभूवह । कान्यकुब्जाधिप. श्रीमान् धर्मज्ञो नीतित्पर ॥१२॥ प्रजानां कलिना तत्र पापे बुद्धिरजायता ॥ ३५॥ - वैष्णवं धर्ममुत्सृज्य बौद्धधमं मुपागताः । .
SR No.010448
Book TitlePuran aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1927
Total Pages117
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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