SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 87
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुराण और जैन धर्म ७३ आम' राजा की "मानादेवी" नाम की एक पटराणी थी. उसके गर्भ से "रवगडा" नाम की बड़ी सुन्दर एक कन्या उत्पन्न हुई। किसी समय दैवयोग से इन्द्रसूरि नाम के - जैनमाधु-हा गये । उन्होंने देखा कि राजकुमारी सोलह वर्ष की हो चुकी है और (2) जर्ति प्रतियोजिता ॥३६॥ तत्यानाम्येतिविश्रुता । गर्भासाता ॥३३॥ जाताना सम्पूर्ण दहिता समये या चन्द्रनिभानना ॥ ३८ ॥ नाममाभूि एकदा दैवयोगेन देन ॥ ३६ ॥ जन्मना। ॥ ४० ॥ यानी रंग मिनि इन्जीवि । जावरा च कथयामास भारत ॥ ४६ ॥ रचनामा यूनिक विमोहिता । नाम नागवणा ॥ ४५ ॥ | पायी ॥ १३ ॥ महादर्शनामिति । arraft देवनानि ॥ ४४ ॥ धर्मान् सभागय राजधानी बनाना । देश स्थापयामास ॥ ४५ ॥ निधा भूता निमाश्रिता 1 बारामैः पूज्यन्ते नांगियोतिम् ॥ ४६ ॥ ;
SR No.010448
Book TitlePuran aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1927
Total Pages117
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy