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________________ १५ पुराण और जैन धर्म (प्रश्न-२)-पभदेव के चरित्र में कोई ऐसा अंश भी है. जो कि वेद से विरुद्ध हो ? यदि है ? तो-अहो भुवः समसमुद्रवत्या द्वीपेयु वर्पस्वधिपुण्यमेतत् । गायन्ति यत्रत्यजना मुरारः कर्माणि भद्राण्यवतारवन्ति ॥१३॥ अहोनुवंशोयशसावदात. प्रैयव्रतो यत्र पुमान्पुराणः । कृतावतारः पुरुपः स प्रायवचारधर्म यदकम हेतुप॥१४॥ कान्वम्य काष्टामग्रानुगच्छेन्मनोरयेनाप्यभवन्य योगी। यो योगमाया:स्पृहयत्युहम्ता हसत्तया येन कृतप्रयत्नाः ॥१५॥ "इति ह स्म सकलदलोकदेवब्राह्मणगवां परमगुरोर्भगवत अपभाख्यस्य विशुद्धाचरितमोरितं पुंसां समस्तदुचरितामिहरणं परममहामङ्गलायनमिदमनुनद्धयोपचितयानुशृणोत्याश्रावयति वा चहितो भगवति तस्मिन वासुदेव एकान्ततो भक्तिरनयोरपिसमनुवर्तन। [१६- स्कं०५ अन्या०६] इस कथन की क्या गति होगी ? इसमें अहो मतमागर पग्विष्टिन पृथिवी के द्वार सरह में यह भाग्न पडा ही पुण्यशाली है,जहा किलाग भगवान मुगरि ऋषभावनार के ममम्त मगलमय कमी का गायन करते है। श्रो! पुराण पुकर भगगन, नियमन कं. वंश में जन्म लेकर मनुष्यों के लिये मान धर्म का प्राचरण कर गये। इससे नियरत का वश या द्वारा बदन ही पिशुद्धि को पास हुमा है। श्रन थे, मनोरय द्वारा भी कोई योगी उनका अनुगमन नहीं पर ताने. भयन्तु सनम कर वे जिन सनम्न योग विभूतियों को संबा कर गये हैं. अन्य योगी जन उन्हीं की प्राति के निये बहुन पन करने हैं। राजन् ! प्रपदेव, लोक, वेद, प्रामण और गो परम गुरु धे, भगवान कारभदेव का यह पिन चरित्र (जो प्रकागित मा है ) पुगों के मनन्त दुचरित्र का नागर पौर परम महब महल का भागार है, अन. जो लोग एकाप चित्त ने श्रद्धापूर्वक इमे मुनते और मुनवाते हैं उनको वासुदेव में गात हद भनिन रोना है।
SR No.010448
Book TitlePuran aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1927
Total Pages117
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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