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________________ १६ पुराण और जैन धर्म करनी चाहिये, यदि श्रन्यान्य पुराणों में भी भागवत के लेखानुसार ही जैन मत की उत्पत्ति का कथन हो तब तो श्रद्धालु पुरुषों का, भागवत के उक्त लेख में सन्देह करना व्यर्थ है परन्तु मत्स्य और शिव पुराण के देखने से पता लगता है कि उनमें जैन धर्म की उत्पति का उल्लेख, भागवत के उक्त कथन से सर्वथा भिन्न है । पाठकों को आगे चल कर यह बात स्पष्ट हो जावेगी । इस दशा में श्रीमद्भागवत का उक्त कथन कहाँ तक विश्वासाई हो सकता है यह पाठक महोदय स्वयं विचार लें ? अस्तु अ भागवत के कथन पर ही कुछ दृष्टि पात करना चाहिये । भागवत के रचयिता का कथन है कि, अर्हन् है नाम जिसका ऐसा कोङ्क वेक और कुटकादि देशों का राजा ऋषभ के चरितको सुन और उसकी शिक्षा को ग्रहण कर निजमति से कलियुग में जैनमत के चलाने वाला होगा उसके मानने वाले वेद, ब्राह्मण और विष्णु आदि के निन्दक होगे और अन्ध परम्परा में विश्वास रखने से घोर नर्क में पड़ेंगे इत्यादि । इस कथन में सत्यांश कितना है इसकी परीक्षा तो पाठक कर चुके हैं परन्तु इस पर एक विचारक के हृदय में जो सन्देह उत्पन्न होते हैं उनका समाधान किस प्रकार हो सकता है । इसका. ख्याल भी रखना जरूरी है । तथा (प्रश्न १ - ) - भगवान् ऋषभ देव का चरित्र यही है जो कि भागवत मे लिखा है या और कोई ? यदि यही है तो उसे और भी किसी ने सुना है या कि नहीं ? यदि अन्य भी सुनने वाले थे तो उनमे से किसी ने वेद विरुद्ध (जैन) मत का प्रचार क्यों न किया ? यदि ऋषभचरित्र कोई और है तो कहां ? और किस ग्रन्थ में लिखा है ?"
SR No.010448
Book TitlePuran aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1927
Total Pages117
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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