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________________ हैदराबाद जिला। [१६३ व बड़ी सुन्दर कारीगरी है तथा हजारों आदमियोंके बैठनेका स्थान है। हम देखनेको गए थे अपूर्व काम किया हुआ है। Arch S. of W. India Vol V Report of Elura by Pur. gess 1880). नाम पुस्तकमें जो वर्णन दिया हुआ है वह नीचे लिखे भांति है। इन्द्रसभा। यहां दो बहुत बड़ी जैन गुफाएँ हैं। दो खनकी हैं। एकका नाम इन्द्र गुफा दूसरीका नाम जगन्नाथ गुफा । इन गुफाओंका समय बौद्ध और ब्राह्मण गुफाओंके पीछे मालूम पड़ता है। क्योंकि राठोड़ वंशके नष्ट होनेके पीछे राष्ट्रकूटोंका राज्य गोविंद तृतीयके समयमें बट गया था जब उसके छोटे भाई इन्द्रने आठवीं शताब्दीके अन्तमें गुजरातमें भिन्न राज्य स्थापित किया था। जैनियोंने इस स्थानपर अधिकार कर लिया था और तब उन्होंने अपने धर्मका महत्व यहांपर स्थापित किया। निमकी उन्होंने अन्य दो धर्मोके मुकाबले में आवश्यक्ता समझी थी। इन्द्रसभा-कैलाश गुफाके समान गुफाओंका समूह है । बीचमें दो खनकी गुफा है। सामने सभा है । हरएक तरफ छोटी २ गुफाएं हैं। गुफाका मुंह दक्षिण ओर है । सभाके बाहर हरतरफ एक छोटा कमरा १९ फुटमे १३ फुट है, जिसमें एक छोटी भीत परदेके तौरपर है । मामने दो खंभे हैं, जो नीचे चौकोर हैं ऊपर गुम्बन हैं। इस कमरेके अन्तमें श्री पार्श्वनाथ भगवानकी और तपस्या करते हुए गोमट्टस्वामी या बाहुबालेकी मूर्तियें हैं । सभाके दक्षिण तरफ एक भीत है और एक द्वार है। यह सभाका कमरा
SR No.010444
Book TitlePrachin Jain Smaraka Mumbai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1982
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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