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________________ NON M ११६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक। समय जैन मंदिरके लिये हरिकेशरीदेव और उसकी स्त्री सच्चलदेवीने भूमि दी । यह वंकापुरके पांच धार्मिक महाविद्यालयोंके स्थापक थे, नगरसेठ थे, महाजन थे और सोलह (The sixteen) थे। ( सोलह थे इसका भाव समझमें नहीं आया )। नगरेश्वरके अवत्तु खम्बद वस्तीके मंदिरमें एक पुराना कनडी लेख है नं० ६में १२ लाइन हरएक २३ अक्षरकी हैं इसका भाव यह है कि शाका १०१३ में त्रिभुवनमल्ल विक्रमादिस द्वि० के अफसरने एक दान किया। नं० ७ वाई तरफ जो लेख है वह २६ अक्षरोंकी लाइनवाला ३७ लाइनमें है। इसमें कथन है कि विक्रमके ४५ वर्षके राज्यमें शाका १० ४२में किरिया बंकापुरके जैन मंदिरको दान किया गया । ( Ind. Alt: IV. 203 & V 203-5. ) धाडवाड गजटियरमें है कि वंकापुरको शाहाबाजार भी कहते हैं । यह धाडवाडसे ४० मील है। यहां कादम्बोंने १०५० से १२०० तक राज्य किया जो पश्चिमी चालुक्योंके आधीन थे (९७३-११९२)। उस समय यह जैनियोंके महत्वसे पूर्ण था । At that time Bankapur Seems to hve been an important Jain centre with a Jain temple and 5 religious colleges, ___ एक बड़ा जैन मंदिर था ( शायद वही जो रंगस्वामीका मंदिर कहलाता है व जिसमें ६. खंभे हैं ) तथा पांच धार्मिक महाविद्यालय थे । सन् १०९१, ११२० और ११३८ में जैन मंदिरको दान किये गए थे जिसका वर्णन नगरेश्वरके मंदिरके लेखमें है । ये दान पश्चिमके चालुक्य राजा विक्रमादित्य द्वि. (१०७३
SR No.010444
Book TitlePrachin Jain Smaraka Mumbai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1982
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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