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________________ पल्लीवाल जैन जाति का इतिहास होता है कि हमेशा से सभी लोगो को 84 के अक से तथा साढे - बारह के अक से कुछ मोह रहा है. इसी कारण 84 जातियो की गिनती पूरी हो जाने पर प्रागे किसी अन्य जाति को सम्मिलित नहीं किया गया। इस प्रकार हम देखते है कि जब कभी 84 जैन जातियो तथा साढे-बारह प्रकार की जातियो को गिनाया गया है उन सब मे पल्लीवाल जाति का नाम भी अवश्य लिया गया है। इससे सिद्ध होता है कि हमेशा पल्लीवाल जाति जनो की एक प्रमुख जाति रही है तथा इसका जैन धर्म के क्षेत्र मे प्रमुख योगदान रहा है। श्री नवलशाह चदोरिया के वर्गीकरण से स्पष्ट है कि पल्लीवाल जाति को उन्होने वैश्य ही माना है । (82) कचौडाघाट के पल्लीवाल कचौडाघाट आगरा जिले की बाह तहसील मे स्थित एक छोटा सा कस्बा है। यह यमुना नदी के तट पर स्थित है । प्राचीन समय में यह एक प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र था। यहाँ पर बडी मात्रा मे नील तथा रग बनाने का कार्य होता था। कपडो की रगाई के लिए भी यह एक प्रसिद्ध स्थान था । यहाँ का व्यापार मुख्यत जल मार्ग द्वारा किया जाता था। यह नगर धन-धान्य से परिपूर्ण था तथा यहाँ के शासको की भी इस नगर पर विशेष कृपा रहती थी। इसी कारण यह नगर कचनपुरी के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस नगर मे बडे-बडे पक्के भवन थे तथा नील और रग बनाने के बडे-बडे हौदे थे। इनके भग्नावशेष अब भी पाये जाते है। कचौडाघाट में पल्लीवाल तथा लबेचू जैनो की बड़ी बस्ती थी। पल्लीवालो के लगभग 150 घर थे। ये सभी लोग बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे। यहां पर दो दिगम्बर जैन मन्दिर है। उनमें से एक मन्दिर पल्लीवालो द्वारा निर्मित है तथा दूसरा
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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