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________________ पल्लीवाल जाति के समाज दर्शन बेचु द्वारा निर्मित है । पल्लोवालो के इस मन्दिर को लगभग 500 वर्ष प्राचीन बताया जाता है। इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि लगभग पाँच-छ सौ वर्ष पूर्व से ही पल्लीवाल लोग कचौडाघाट श्राकर बस गये थे । यहाँ के लबेचश्रो का सबध निकट के अन्य नगरो अटेर, हथकात, नौगावा, पारना साहपुरा तथा जेतपुर से था । पल्लीवालो का विशेष सम्बन्ध चन्दवाड ( फिरोजाबाद के निक्ट), कन्नौज, भिण्ड तथा मुरैना से था । hatsrघाट मे बसने से पूर्व ये पल्लीवाल चन्दवाड तथा कन्नौज में रहते थे। चूंकि कचौडाघाट व्यापार के लिए एक प्रसिद्ध नगर था, अत कालान्तर में कुछ पल्लीवाल यहाँ आकर बस गये । 59 यहाँ के बेचू तथा पल्लीवालों का मुख्य व्यवसाय नील तथा रग बनाने का था। इन लोगो ने अपने इस कार्य मे प्रसिद्धि प्राप्त कर ली थी। लोग बहुत धनाड्य थे तथा नील और रग का निर्यात भी करते थे । व्यापार को और अधिक बढाने के उद्देश्य से आगरा सहित कई स्थानो पर इन्होने कई बसने ( गद्दियाँ) स्थापित किये। अकेले आगरा मे इनके 52 बसने थे । यद्यपि ये लोग मुख्यत व्यापार में सलग्न थे, तथापि कई वहाँ के शासको के यहाँ उच्च पदो पर भी ग्रासीन थे । ये लोग अपनी ईमादारी तथा सच्चाई के लिए प्रसिद्ध थे. इसीलिए राजा भदावर का खजान्ची प्राय कोई पल्लीवाल या लबेचू ही होता था । हालांकि यहाँ के जैनो पर यहाँ के शासको की हमेशा ही विशेष कृपा रही, फिर भी डाकुनो तथा लुटेरो का प्रातक बना ही रहता था । जैनो के मकान पक्के बने हुये थे । अपने धन को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से इन्होने अपने धन को पक्की दीवारो
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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