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________________ 67 पल्लीवाल जाति का समाज दर्शन (66) पचम, (67) अच्चिरवाल, (68) अजुध्यापूर्व (69) नानावाल, (70) मडाहर, (71) कोरटवाल, (72) करहिया, (73) अनदोरह, (74) हरदौरह (75) जेहरवार, (76) जेहरी, (77) माध, (78) नासिया, (79) कोलपुरी, (80) यमचौरा, (81) मैसन पुरवार, (82) वेस (83) पवडा, (84) प्रोमडे । इस प्रकार जातियो का वर्गीकरण देखने से ऐसा लगता है कि यह वर्गीकरण जाति मे लोगो की संख्या के आधार पर किया गया है। अधिक जनसख्या वाली जातियो को साढे बारह प्रकार की जातियो की श्रेणी में रखा गया है। उनसे कम जनसख्या वाली जातियो को जैन-लगार वाली श्रेणी में रखा गया है। शेष जानियाँ अधिकाशत अजैन है। यदि इनमे से कुछ लोग जैन धर्म मानते भी है तो उनकी सख्या बहुत कम है। अन्य जातियो की श्रेणी में कुछ ऐसी भी जातियाँ है जो पहले थी लेकिन वर्तमान मे उन जानियो का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है। अग्रवाल जाति को प्राधा लेने का तात्पर्य मात्र इतना है कि इस जाति के लगभग आधे लोग ही जैन धर्मानुयायी है तथा शेष वैष्णव या अन्य मतावलम्बी है। हिन्डोन निवासी श्री कजोडीलाल राय से प्राप्त लगभग 150 वर्ष प्राचीन हस्तलिखित प्रार्थना-पुस्तक' मे भी साढे-बारह प्रकार की जातियो का वर्णन पाता है, इन जातियों मे एक पल्लीवाल जाति भी है। जैन जातियाँ या वैश्य जातियाँ मात्र 84 ही है, ऐसा नही है। जैन जातियो की संख्या 84 से कही बहुत अधिक है। वैश्य जातियाँ और भी अधिक है। लेकिन देखा यह गया है कि इस प्रकार गिनती कराने में मात्र 84 जातियों को ही गिनाया गया है। इसी प्रकार साढे-बारह जातियो कि भी बात है। ऐसा प्रतीत
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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