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________________ (F) उन पर ही छोड दिया। उनसे बात करने पर पता चला कि वे इसमे 1978 से लगे हुए हैं। अब 1988 में यह कार्य पूरा किया गया है । मुझे इसकी अतीव प्रसन्नता है कि इनका यह कार्य 10 वर्ष मे ही सही लेकिन अब पूरा हो गया । जहाँ तक मेरी जानकारी है पल्लीवाल जाति का सम्बन्ध कुछ किम्वदन्तियो के आधार पर पाली से माना जाने लगा था । किन्तु इतिहास ने इस मान्यता को गलत सिद्ध कर दिया है । " दक्षिण भारत मे जैन धर्म" नामक अपनी पुस्तक मे प० कैलाश चन्द्र जी सिद्धान्त शास्त्री ने पृष्ठ 46 पर लिखा है, " तामिल देश के शिलालेखो में प्राय' पल्ली चदम शब्द मिलता है। श्री वी पी देसाई ने लिखा है कि पल्ली शब्द जैन मन्दिर या जैन मठ या जंन सस्था का सूचक है । और चान्दम का सरल रूप चन्दम् है । यह संस्कृत के स्वतन्त्र शब्द से बना है प्रत पल्लीचन्दम् का अर्थ होता है - जिस पर केवल जैन मन्दिर वैगरह् का स्वामित्व हो । जैसे जमीन, गाँव वगैरह ।" उन्होंने यह भी सिद्ध कर दिया है कि पल्ली तामिल भाषा के शब्द कोष में उनको कहते थे कि जो जैनो ने जंगल काट कर पहाडी की जड में छोटे गाँव बसाये थे। वैसे भी पल्ली शब्द तामिल भाषा का ही है । प्रस्तुत इतिहास में इन पल्लियो से ही पल्लीवालो की उत्पत्ति सिद्ध की गई है । इसके बाद बौद्धो शैवो ने राजनीति से प्रेरित होकर इन लोगो पर अत्याचार किए। ऐसी बहुत सी कैफियत मिलती हैं जिनसे यह सिद्ध हो गया है कि जैनो पर अमानुषिक अत्याचार किए गये तथा उन्हें अनेक प्रकार से तंग किया जाने लगा । अत वहाँ से उन्होने अपना स्थान छोडना ही उचित समझा तथा आध्र, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य भारत, उत्तर प्रदेश व राजस्थान मे ग्राकर बस गये। जैसा कि नक्शे में अकित किया गया है ।
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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