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________________ (Q) तो प्रबुद्ध पाठक उसे प्रकाश में लाये, जिससे उसका उपयोग भगले सस्करण में किया जा सके । मैं जैन समाज के दो महान् इतिहासज्ञ - डा० कस्तूरचन्द जी कासलीवाल, जयपुर तथा डा० ज्योति प्रसाद जी जैन, लखनऊ का बहुत-बहुत प्रभारी हूँ जिन्होने मुझे समय-समय पर बहुमूल्य मार्ग दर्शन प्रदान किया । डा० कासलीवाल जी की मुझ पर विशेष कृपा रही है । उन्होने अनेक व्यस्तताओं के बावजूद भी मुझे अपना बहुमूल्य समय दिया । जब भी मैं आपसे मिलने गया, आपने बहुत प्रसन्नता के साथ विचार-विमर्श किया तथा अपने सुझाव दिये । आप मुझे निरतर प्रोत्साहित करते रहे। आपन "दो शब्द लिखकर प्रस्तुत इतिहास को न सिर्फ मान्यता ही प्रदान की है, बल्कि इसके महत्व को भी दुगुना कर दिया है । इस सबके लिए मैं आपका सदा ऋणी रहूँगा । मैं उन सभी महानुभावो का आभारी हूँ जिन्होने मुझे सामग्री एकत्रित करने व सजाने में परामर्श व सहयोग दिया है, विशेष रूप से मै आगरा के वयोवृद्ध बाबू प्रतापचंद जी जैन तथा अलवर के रिटायर्ड थानेदार श्री महावीर प्रसाद जी जैन का आभारी हूँ । मैं 'स्वावलम्बी कॉलेज प्रॉफ एज्यूकेशन, वर्धा' के प्राचार्य श्री विद्याधर जी उमाठे का बहुत आभारी हूँ जिन्होने मुझे नागपुर क्षेत्र के पल्लीवालो के बारे मे विस्तृत जानकारी प्रदान की। मैं श्री स्वरूपचन्द जी जैन तथा श्री मनोहरलाल जी जैन (आगरा ) का आभारी हूँ जिन्होने मुझे कचौडाघाट के पल्लीवालो के बारे मे जानकारी दी तथा श्री रामजीत जैन एडवोकेट (ग्वालियर ) का प्रभारी हूँ जिन्होने मुझे सौरीपुर से प्राप्त प्राचार्य पट्टावली के बारे मे जानकारी दी। इस इतिहास को लिखने मे जिन महा
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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