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________________ (२) श्रुटिपूर्ण तथा विवादास्पद न रहा होता । इन सब कारणो से ही परलीवाल जाति के इस इतिहास को लिखने की प्रेरणा मिली। दिगम्बर प्राम्नाय में ऐसी मान्यता है कि प्राचार्य कुन्दकुन्द जो कि वि० स० 49 में हुए थे, पल्लीवाल जात्युत्पन्न थे। पूज्य पिताजी मा० रामसिह जैन को प्रेरणा से लिखा 'भगवान कुन्दकन्दाचार्य' नामक मेग एक लेख 'पल्लीवाल जैन पत्रिका' (फरवरी सन् 1978) में प्रकाशित हुआ था। इस लेख में मैंने प्राचार्य कुन्दकुन्द को पल्लीवाल जाति का बताया था। इस लेख को लेकर बडा विवाद हुआ। उसे पढकर आगरा के वयोवृद्ध श्री श्यामलाल जी वारौलिया ने मुझे पल्लीवाल जाति का इतिहास नये सिरे से लिखने के लिए प्रेरित किया। मेरे उक्त लेख के प्रकाशित होने के दो माह बाद ही मेरे पिताजी का दि० 28 अप्रैल सन् 1978 को देहान्त हो गया। तब मेरे सामने प्रश्न था कि अब मै किससे मार्ग दर्शन प्राप्त करूं । अन्त में मैने पल्लीवाल जाति के इतिहास की सामग्री के सकलन का कार्य प्रारम्भ कर दिया। समय-समय पर श्री वारौलिया जी मुझे इस कार्य के लिए बढावा देते रहे। इसके परिणाम स्वरूप कुछ समय मे ही काफी मामग्री एकत्रित हो गई। मै इतिहास लिखने का कार्य प्रारम्भ करने ही वाला था कि सन् 1982 मे श्री वारौलिया जी का निधन हो गया। अब मुझे प्रेरणा देने वाला कोई भी नहीं था, लेकिन इस समय तक इतिहास को लिखने की पूरी-पूरी रुचि मुझमे जाग्रत हो चुकी थी। फलत मै इस इतिहास को लिख सका हूँ। वैसे तो इतिहास कभी पूरा नही हो पाता है। यह निरन्तर गहन खोज का विषय है, जितना खोजेगे उतने ही नये-नये तथ्य सामने आयेगे। अव तक मुझे पल्लीवाल जाति से सम्बन्धित जितनी भी सामग्री मिली है उसका मैंने यथासम्भव पूरा-पूरा उपयोग किया है। इसके वावजूद भी कही कोई त्रुटि रह गई हो
SR No.010432
Book TitlePallival Jain Jati ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAnilkumar Jain
PublisherPallival Itihas Prakashan Samiti
Publication Year
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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