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________________ देशी भाषा और अपभ्रंश ४३ हमें जो इस भाषा का साहित्य अबतक मिला है उसमें : स्वयंभू कवि के पउमचरिउ और हरिवंशपुराण सबसे प्राचीन सिद्ध होते हैं । पउमचरिउ के प्रारम्भ में कवि ने राम की कथा 1 के सम्बन्ध में कहा है - वद्धमाण- मुह- कुहर - विणिग्गय रामकहा- णइ एह कमागय । दीह समास - पवाहालंकिय सक्कय-पायय- पुलिणालंकिय । देसी भासा - उभयतडुज्जल कविदुक्कर घणसदसिलायल | अत्यबहल कल्लोलाणिट्टिय आसामय-समऊह-परिष्ट्रिय । एह रामकइ - सरि सोहंती गणहरदेवहं दिट्टू वहंी ॥ यद्यपि यहां स्पष्ट यह नहीं कहा गया कि प्रस्तुत ग्रंथ को कवि ने कौन सी भाषा में रचा है किन्तु मेरे मत से ' देशी भाषा ' से कवि का अपने ग्रंथ की भाषा से अभिप्राय है । रविषेण कृत संस्कृत 'पद्मचरित ' और विमलसूरिकृत प्राकृत 'पउमचरिउ ' कवि से पूर्व बन चुके थे, इसलिये उन्हें कवि ने रामकथा रूपी नदी के वीच दृश्यमान पुलिन कहा है । स्वयंभू से पूर्व 'देसी भासा ' में बने हुए किसी रामकथा सम्बन्धी ग्रंथ का, विशेषतः जैनसाहित्य
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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