SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 44
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२ पाहुड - दोहा किया है । ऊपर उद्धृत टीका में जो वज्जर-पज्जर आदि सूत्र का उल्लेख है वह भी चौये पांद का दूसरा सूत्र है । यह सूत्र सभी प्राकृतों को लागू है। . इस कोश की उक्त विशेषताओं पर से यह प्रमाणित होता है कि हेमचन्द्र ने उसे अपने प्राकृत व्याकरण का सहकारी ग्रंथ - - वनाया है । जो संज्ञायें या अन्य शब्द उनके व्याकरण के नियमों: - द्वारा सिद्ध होते हैं उन्हे वे प्राकृत कहते हैं और उनके कारक व 1 1 " क्रिया के रूपों की विशपतानुसार वे उन्हे, शौरसेनी, महाराष्ट्री . व अपभ्रंश आदि नाम देते हैं; तथा जो संज्ञायें उक्त भाषाओं में प्रचलित हैं किन्तु उनके व्याकरण से सिद्ध नहीं होतीं उन्हे वे 'देशी' कहते हैं और उनके अर्थ उक्त कोश में दिये गये हैं। इस तरह उन्होने ' अपभ्रंश ' का प्रायः उसी अर्थ में उपयोग किया है जिस अर्थ . 1 ގ में कि पातञ्जलि ने किया है से । वे संस्कृत से विकृत रूपों की दृष्टि एक भाषा को ' अपभ्रंश ' कहते हैं और उसी भाषा को उसमें प्रचलित संस्कृत से अव्युत्पन्न शब्दों, भरतमुनि के अनुसार ' म्लेच्छ शब्दों की दृष्टि से 'देशी' कहते हैं । अब हमें यह भी देख लेना चाहिये कि जो ग्रंथ- हमें मिले 1. , और जिन्हे हमने अपभ्रंश भाषा में रचित मान लियां है, उनके.. " कर्ताओं ने स्वयं उन्हें किस भाषा का कहा है । यद्यपि इस सम्बन्ध . के उल्लेख कम मिटते हैं तथापि जो कुछ दो चार मिल सकते हैं • उनसे हमें मंथकर्ताओं का अभिप्रायः ज्ञात हो जावेगा ।
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy