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________________ देशीभाषा और अपभ्रंश ३९ रुद्रट भामहं रुद्रटे, राजशेखर, नमिसाधु, वाग्मेंट ने अपभ्रंश काव्य को संस्कृत और प्राकृत काव्य के साथ साथ स्वीकार किया है तथा कहीं कहीं अपभ्रंश को ही देशी भाषा कहा है। उदाहरणार्थ, भापा के छह भेद करते हैं 'पष्टोऽत्र भूरिभेदो देशविशेषादपभ्रंश: । इसी पर टीका करते हुए नमि साधु कहते हैं " तथा प्राकृतमेवापभ्रंशः । स चान्यैरुपनागराभीरप्राम्यावभेदेन त्रिधोक्तस्तन्निरासार्थमुक्तं भूरिभेद इति । कुतेो देशविशेषात् । तस्य च लक्षणं लोकादेव सम्यगवसेयम् " । वाग्भट अपभ्रंश के सम्बन्ध में कहते हैं ' अपभ्रंशस्तु यच्छुद्धं तत्तद्देशेषु भापितम् ' । राजशेखर ने भाषाओं को भिन्न भिन्न प्रदेशों में बांटते हुए कहा है 'सापभ्रंशप्रयोगाः सकलमरुभुवष्टकभादानकाथ' अर्थात् अपभ्रंश का प्रयोग समस्त मरुभूमि, टक्क और मादानक (3) देशों में होता है । इन्ही टक्क और मरुभूमि की भाषाओं को राजशेखर के प्रायः समसामयिक, विलासवती कथा के कर्ता ने अठारह देशी भाषाओं के अन्तर्गत बाताया है । विष्णुधर्मोत्तर के कर्ता ने स्पष्ट रूप से अपभ्रंश को देशभेद के अनुसार पृथक् पृथक् कहा है" । ३ काव्यमीमांसा पृ. ६, ४८-५४, ४ काव्यालंकार वृत्ति २,११. १ काव्यांलकार १, १६. २ काव्यालंकार २,११-१२; ५ वाग्भटालंकार २,१-३. ६ देखो अपभ्रंश काव्यत्रयी, बडोदा संस्कृत सीरीज ३७, भूमिका पृ. ९२-९३. ७ उपर्युक्त भूमिका पृ. ९६०
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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