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________________ • पाहुड-दोहा . . . काव्यादर्श के कर्ता दण्डी ने समस्त वाङ्मय के चार भेद किये हैं- संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश और मिश्र । ये चार भेद दण्डी से पूर्व ही माने जा चुके थे । इन आचार्य ने अपभ्रंश के सम्बन्ध में जो बड़ी महत्त्वपूर्ण बात कही है वह यह है कि काव्य में तो आभीर आदि जातियों की भापा ही अपभ्रंश मानी गई है, किन्तु शास्त्र में संस्कृत से अन्य । सभी भाषायें अपभ्रंश कही गई हैं। शास्त्र से दण्डी का यहां .. तात्पर्य संभवतः भाषाशास्त्र अर्थात् व्याकरण से है और जान पडता है उन्होने यह बात पातनलि के उल्लेख को ध्यान में रख कर कही है। दूसरी उपयोगी बात उन्होने यह कही है कि मामीरादि जातियों की भाषा में भी कविता होती है और यह कविता अपभ्रंश के नाम से प्रसिद्ध है । यथा आभारादिगिरः काव्येष्त्रपभ्रंशतया स्मृताः । शास्त्र तु संस्कृतादन्यदपभ्रंशतयोदितम् ।। इस प्रकार जिसे भरतमुनि ने देशी भाषा या विभापा कहा है, उसी के काव्य को दण्डी और, उनके सामयिकों ने अपभ्रंश कहा है। दण्डी के पश्चात् अलंकार शास्त्र के अनेक कर्ताओं, जैसे ४ देनदाङ्मयं भूयः संस्कृतं प्राकृत तथा । अपराध मि नत्यानुरामाश्चतुर्विधम् ॥ १, ३१. ' ... '
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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