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________________ पाहुड-दोहा भवि भवि दसणु मलरहिउ भवि भवि कररं समाहि । भवि भवि रिस गुरु होड़ महु णिहयमणुभववाहि ॥२१॥ अणुपहा बारह वि जिय भांविवि एक्कमणेण । रामसीह मुणि इम भणइ सिवपुरि पावहि जेण ॥२११॥ सुण्णं ण होइ सुण्णं दीसइ सुण्णं च तिहुँवणे सुण्णं । अपहरइ पावपुण्णं सुण्णसहावेणे गओ अप्पा ।।२१२॥ वेषयहि ण गम्मइ बेमुहसूई ण सिजए कंथा । 'विण्णि ण हुंति अयाणा इंदियोक्खं च मोक्खं च ॥२१३ उपवासह होइ पलेवणा संताविजइ देहु । घर डझइ इंदियतणउ मोक्खहं कारणु एहु ॥२१॥ अच्छर भोयणु ताहं धरि सिद्ध हरेप्पिणु जेत्थु। ताहं समर जय कारियई तो मेलियइ समत्तु ।।२१५॥ जइ लद्धर माणिवाडर जोइय पुहवि भमंत । पंधिन्नइ णियाप्पडई जोइजई एकंत ॥२१६॥ क. 'माणु'. २ क, भवि भवि इक'.३ क. इम्ब, ४ क. तियण.. क. सहावे. ६ क. वेविनि. ७ क° सुक्खंत्र नुवं च. ८ के. पलेवणउ. ९ क. जोयर, १० क. सिद्ध हरेविणु । जित्यु. ११ के. करियई. १२ क, ना (?). १३. काजोइबहि इचंत.
SR No.010430
Book TitlePahuda Doha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBalatkaragana Jain Publication Society
Publication Year1934
Total Pages189
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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