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________________ ३० ] [ नेमिनाथमहाकाव्य द्योतित होती है । प्रस्तुत पद्य मे वायु से हिलते कमल मे 'नायिका के मुख से भय' की सम्भावना करने से उत्प्रेक्षा की भावपूर्ण अवतारणा हुई है। पवमानचचलदल जलाशये रवितेजसा स्फुटदिद पयोम्हम् । परिशष्यते बत मया तवाननात् कमलामि | विभ्यदिव कम्पतेतराम् ॥२११६ प्रभात का निम्नोक्त वर्णन रूपक का परिधान पहन कर आया है । यहाँ रात्रि, तिमिर, दिशाबो तथा किरणो पर क्रमश स्त्री, अजन, पुत्री तथा जल का आरोप किया गया है । रात्रिस्त्रिया मुग्धतया तमोऽजदिग्धानि काळातनयामुखान्यथ । प्रक्षालयत्पूपमयूखपाथसा देच्या विभात ददृशे स्वतातवत् ।।२।३० कृष्ण पत्नियां नेमिनाथ को जिन युक्तियो से वैवाहिक जीवन मे प्रवृत्त करने का प्रयास करती हैं, उनमे से एक मे दृष्टान्त की सुन्दर योजना कि च पित्रो सुखायैव प्रवर्तन्ते सुनन्दना । सदा सिन्धो प्रमोदाय चन्द्रो व्योमावगाहते ॥६॥३४ शरद्वर्णन में मदमत्त वृपम के आचरण की पुष्टि सामान्य उक्ति से करते हुए अर्थान्तरन्यास का प्रयोग किया गया है ।। मदोत्कटा विदार्य भूतल वृषा क्षिपन्ति यत्र मस्तके रजो निजे। . अयुत्त-युक्त-कृत्य-संविचारणां विवन्ति कि कदा मदान्धयुद्धय ॥३१४४ शिशु नेमिनाथ के स्नात्रोत्सव के निम्नोक्त पद्य मे कारण तथा कार्य के भिन्न-भिन्न स्थानों पर होने के कारण अमगति अलवार है। । गन्यसार-घनसार-विलेपं कन्यका विदधिरेऽथ तदगे। फौतुक महदिद यदभूपामप्पनश्यदखिलो खलु ताप ॥४॥४४ ___ समुद्र विजय के गीर्यवर्णन के अन्तर्गत प्रस्तुत पक्तियो मे शत्रुओ के वय का प्रकारान्तर में निरूपण किया गया है । मत. यहां पर्यायोक्न मलद्वार है।
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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