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________________ नेमिनाथमहाकाव्य ] [ २६ दृष्ट वाथ नेमि विनिवर्तमान किमेतदित्याकुल वदन्त । तमन्वधावन् स्वजना समस्तास्त्रस्ता कुरगा इव यूथनाथम् ।।१०।३४ काव्य में इस प्रकार की अनेक मार्मिक उपमाए' दृष्टिगत होती हैं । भावाभिव्यक्ति के लिये कवि ने मूर्त तथा अमुर्त दोनो प्रकार के उपमानो का समान मफलता से प्रयोग किया है । नेमि के आदेश से सूत ने वधूगृह से रथ इस प्रकार मोड लिया जैसे योगी ज्ञान के बल से अपना मन बुरे विचार से हटा लेता है। । सूतो रथ स्वामिनिदेशतोऽय निवर्तयामास विधाहगेहात् । यथा गुरुजानवलेन मशु दुनितो योगिजनो मन स्वम् ॥१०॥३३ यहां मूर्त रथ की तुलना अमूर्त मन से की गई है । निम्नाङ्कित पद्य मे कवि ने अमूर्त भाव की अभिव्यक्ति के लिए मूर्त उपमान का आश्रय लिया है । राजा ने जिस-जिम पर कृपा-दृष्टि डाली उसका हर्प-लक्ष्मी ने ऐसे आलिगन किया जैसे कामातुर युक्ती अपने प्रेमी का। य य प्रसन्नन्दुमुस स राजा विलोकयामास दृशा स्वमृत्यम् । शिश्लेष त त गुरुहर्षलक्ष्मी कामातुरेव प्रमदा स्वकान्तम् ।।३।६ उत्प्रेक्षा के प्रयोग मे भी कवि का यही कौशल दृष्टिगोचर होता है। भावपूर्ण सटीक अप्रस्तुतो से कवि के वर्णन चमत्कृत हो उठे हैं। छठे सर्ग मे देवागनाओ के तथा नवे सर्ग मे राजीमती के सौन्दर्य-वर्णन के प्रसङ्ग मे अनेक अनठी उत्प्रेक्षाओ का प्रयोग हुआ है। देवागनाओ की पुष्ट जघनस्थली ऐसी लगती थी मानो कामदेव की आसनगद्दी हो । (६।४७) आस नगद्दी अप्रस्तुत से जघनस्थली की स्थूलता तथा विस्तार का भान सहज ही हो जाता है। शरत्काल मे भौरो से युक्त कमल ऐसे शोभित हुए मानो शरत् के सौंदर्य को देखने के लिये जलदेवियो ने अपने नेत्र उघाडे हो (८।४१)। राजीमती के स्तन ऐसे लगते थे मानो उसके वक्ष को फोडकर निकले हुए काम के दो कन्द हो (९५४) । उमकी जघाए' कामगज के आलान (वन्धन स्तम्भ) प्रतीत होते थे (५५) । आलान मे उसकी जवाओ की वशीकरण क्षमता स्पष्ट
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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