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________________ नेमिनाथमहाकाव्य ] राज्यच्युत न कर दे, किन्तु उन्होंने कृष्ण को आश्वासन दिया कि मुझे सासारिक विषयो मे रुचि नही, तुम निर्भय होकर राज्य का उपभोग करो। नवें सग मे नेमिनाथ के माता-पिता के आग्रह से श्रीकृष्ण की पत्नियां, नाना युक्तियाँ देकर उन्हे वैवाहिक जीवन मे प्रवृत्त करने का प्रयास करती हैं । उनका प्रमुख तर्क है कि मोक्ष का लक्ष्य सुख-प्राप्ति है, किन्तु यदि वह विषयो के भोग से ही मिल जाये, तो कष्टदायक तप की क्या आवश्यकता ? नेमिनाथ उनकी युक्तियो का दृढतापूर्वक खण्डन करते हैं। उनका कथन है कि मोक्षजन्य आनन्द तथा विपय-सुख मे उतना ही अन्तर है जितना गाय तथा स्नुही के दूध मे | किन्तु माता के अत्यधिक माग्रह से वे, केवल उनकी इच्छापूर्ति के लिये, गार्हस्थ्य जीवन में प्रवेश करना स्वीकार कर लेते है। उग्रसेन की लावण्यवती पुत्री राजीमती से उनका विवाह निश्चित होता है। दसवें सर्ग मे नेमिनाथ वगृह को प्रस्थान करते हैं। यही उन्हे देखने को लालायित पुरसुन्दरियो के सम्भ्रम तथा तज्जन्य चेष्टाओ का रोचक वर्णन किया गया है। वधूगृह मे वारात के भोजन के लिए बचे हुए मरणोन्मुख निरीह पशुओ का चीत्कार सुनकर उन्हे मात्मग्लानि होती है, और वे विवाह को बीच मे ही छोडकर दीक्षा ग्रहण कर लेते है। ग्यारहवें सर्ग के पूर्वार्द्ध मे अप्रत्याशित प्रत्याख्यान से अपमानित राजीमती का करुण विलाप है। मोह-सयम-युद्ध वर्णन नामक इस सर्ग के उत्तरार्द्ध मे मोह और सयम के प्रतीकात्मक युद्ध का अतीव रोचक वर्णन है। पराजित होकर मोह नेमिनाथ के हृदय-दुर्ग को छोड़ देता है जिससे उन्हे केवलज्ञान की प्राप्ति होती है। बारहवें सगं मे श्रीकृष्ण आदि यादव केवलज्ञानी प्रभु की वन्दना करने के लिये उज्जयन्त पर्वत पर जाते हैं। जिनेश्वर की देशना के प्रभाव से उनमे से कुछ दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं तथा कुछ श्रावक धर्म स्वीकार करते हैं। जिनेन्द्र राजीमती को चरित्र रथ पर बैठाकर मोक्षपुरी भेज देते हैं और कुछ समय पश्चात् अपनी प्राणप्रिया से मिलने के लिये स्वय भी परम पद को प्रस्थान करते है।
SR No.010429
Book TitleNeminath Mahakavyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKirtiratnasuri, Satyavrat
PublisherAgarchand Nahta
Publication Year1975
Total Pages245
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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